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Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में न्यायपालिका (Judiciary) से जुड़ा एक बहुत अहम और सीधा-सपाट फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि वकालत का सात साल का अनुभव रखने वाले ज्यूडिशियल अफ़सर (Judicial Officers) भी 'बार कोटा' (Bar Quota) के तहत अतिरिक्त जिला जज यानी ADJ (Additional District Judge) बनने के योग्य हैं, बशर्ते उन्होंने सरकारी नौकरी में आने से पहले वकालत की हो और उनके पास वकालत का कुल सात साल का अनुभव हो।

क्या है यह पूरा मामला: अदालत को यह तय करना था कि, क्या संविधान के अनुच्छेद 233(2) में बताए गए प्रावधानों के तहत ऐसे ज्यूडिशियल अफ़सर भी अतिरिक्त जिला जज के पद पर सीधी भर्ती (Direct Recruitment) के लिए आवेदन कर सकते हैं या नहीं? यह पद सिविल और आपराधिक दोनों मामलों में बड़ा और अहम माना जाता है।

अनुच्छेद 233(2) यह कहता है कि कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी केंद्रीय या राज्य सरकार की सेवा में न हो, वह ज़िला जज के रूप में नियुक्त होने का पात्र है, बशर्ते उसे कम से कम सात साल तक वकील या एडवोकेट (Advocate) के रूप में काम करने का अनुभव हो। इसी को बोलचाल में 'बार कोटा' कहा जाता है, यानी वकीलों के लिए न्यायाधीश बनने का एक सीधा रास्ता।

सुप्रीम कोर्ट का स्पष्टीकरण: जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार (Justices Ajay Rastogi and CT Ravikumar) की पीठ ने एक बेहद संतुलित व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने साफ़ किया कि कोई भी ज्यूडिशियल अफ़सर जिसने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और उनके पास वकालत का 7 साल का अनुभव है, तो उसे सिर्फ इस आधार पर अयोग्य (Ineligible) नहीं माना जा सकता कि वह बाद में न्यायिक सेवा (Judicial Service) में चला गया था।

कोर्ट ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 233(2) सिर्फ इतना कहता है कि आवेदक 'केंद्र या राज्य की सेवा में नहीं होना चाहिए' जब वह इस पद के लिए आवेदन कर रहा हो। इसमें यह नहीं कहा गया है कि व्यक्ति को अपने 7 साल की वकालत का अनुभव लगातार बिना किसी ब्रेक के पूरा करना चाहिए। अगर उस अधिकारी ने इस्तीफा देकर खुद को सरकारी सेवा से अलग कर लिया है और आवेदन करते समय उसके पास 7 साल का वकालत का अनुभव है, तो वह पूरी तरह पात्र है।