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सपा राष्ट्रीय सचिव पूर्वमन्त्री राम आसरे विश्वकर्मा ने दिल्ली के राजघाट पर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की समाधि पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

इस अवसर पर आयोजित विश्वकर्मा समाज के सम्मेलन के सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्वमन्त्री राम आसरे विश्वकर्मा ने कहा ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के एक गरीब बढई विश्वकर्मा परिवार में पैदा होकर अपने संघर्ष के बल पर पंजाब के मुख्यमंत्री तथा देश के गृहमंत्री और देश के राष्ट्रपति बने थे।उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि यदि मन में दृढ इच्छाशक्ति हो और नेतृत्व के प्रति सच्ची निष्ठा हो तो ब्यक्ति संघर्ष के बल पर गरीब और पिछडी जाति में पैदा होकर देश के बडे पद पर पहुच सकता है।इसलिए विश्वकर्मा समाज के लोगो को अपने मन से हीनता निकालनी चाहिए और अपनी पहचान के साथ कर्म करना चाहिये।


ज्ञानी जैल सिंह एक समाजवादी विचारक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी महान देशभक्त और संघर्षशील नेता थे।देश की आजादी की लडाई में अंग्रेज़ों से लडते हुए बार बार जेल गये इसलिए जेलर ने झुझलाकर इनका नाम जैल सिंह रख दिया। ज्ञानीजी गरीबों और पिछडो वंचितो के लिये आजीवन कार्य करते रहे और राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर रहते हुये भी राष्ट्रपति भवन में विश्वकर्मा समाज के लोगों के लिये एक अलग सेल बनाया था जिसका प्रभारी श्री परमानंद पांचाल को बनाया था।


ज्ञानी जैल सिंह अंग्रेजी में भी पढे लिखे थे लेकिन सच्चा देशभक्त और हिन्दी प्रेमी होने के कारण हमेशा मातृभाषा हिन्दी में ही अपना सरकारी कामकाज करते थे।एक बार संघ लोक सेवा आयोग की प्रतियोगी परीक्षाओं में हिन्दी लागू करने के प्रश्न पर जब विपक्षी दलों द्वारा धरना दिया जा रहा था तो ज्ञानी जी पूर्व राष्ट्रपति होने के बाद भी हिन्दी लागू करने के लिये प्रोटोकॉल तोडकर संघ लोक सेवा आयोग के सामने धरने पर बैठे थे ताकि गांव के गरीब पिछडे दलित और किसान के लडके हिन्दी माध्यम से परीक्षा देकर आइ ए एस बन सके।


राष्ट्रपति रहते हुये वह कभी रबर स्टैंप नही बने और केन्द्र सरकार के इंडियन पोस्टल बिल पर नागरिकों के मूल अधिकार के हनन के प्रश्न पर असहमत होकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी की बात नही मानी और हस्ताक्षर करने से  इन्कार कर दिया।उनके इस कदम से उन्हे देश के एक सशक्त राष्ट्रपति के रूप में उन्हें याद किया जाता रहा है।हांलाकि प्रधानमन्त्री नाराज हो गये थे और राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्हें उनके उपेक्षा का शिकार भी होना पडा था।


25 दिसम्बर 1995 को एक सडक दूर्घटना में उनकी मौत हो गयी।यद्धपि अगर उनका सही समय से इलाज किया गया होता तो उनको बचाया भी जा सकता था।


आज जो बीजेपी की सरकार है वह पिछडो की विरोधी है। कितने परिश्रम के बाद समाजवादी पार्टी की सरकार ने विश्वकर्मा पूजा का सार्वजनिक अवकाश घोषित करके विश्वकर्मा की पहचान बनायी थी और विश्वकर्मा समाज का सम्मान बढाया था लेकिन भाजपा सरकार ने विश्वकर्मा पूजा का अवकाश निरस्त कर अपमान किया और पहचान मिटाने का काम किया।फिर भी लोग झूठ बोलकर गुमराह कर रहे है।

पिछडे वर्गो के आरक्षण को समाप्त करने की साजिश की जा रही है।अब कोई पिछडी जाति का नौजवान चाहे विश्वकर्मा ही क्यों न हो विश्वविद्यालय का प्रोफेसर नहीं बन सकता।पिछडा वर्ग आयोग को संबैधानिक दर्जा देने के नाम पर आयोग के स्वरुप को बदला जा रहा है जिससे भविष्य में आरक्षण का वास्तविक लाभ पिछडे वर्गों न मिल सके।


समाजवादी पार्टी की सरकार में विश्वकर्मा समाज के विकास की जो योजनाये चलायी थी भाजपा सरकार बनते ही बन्द हो गयी।विश्वकर्मा समाज को चाहिये कि वह एक नजर अपने कारोबार पर रखे और एक नजर दिल्ली और लखनऊ के सरकार पर रखे कि कौन सरकार उनकी हितैषी है।

ज्ञानी जैल सिंह आज अगर होते तो कभी चुप नही बैठते समाज के सम्मान को बचाने के लिये अवश्य आगे आते।

अखिल भारतीय विश्वकर्मा शिल्पकार महासभा पूरे देश में  25 दिसम्बर को प्रतिवर्ष ज्ञानी जैल सिंह की पुण्यतिथि मना कर उन्हें याद करती है।

श्री विश्वकर्मा ने कहा कि आज सभी विश्वकर्मा समाज के लोगअपने पूर्वज ज्ञानी जैल सिह के ब्यक्तित्व और कृतित्व को याद करे और उनके आदर्शों भी पर चलने का संकल्प लें यही उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

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