_36725527.png)
Up Kiran, Digital Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव का ऐलान भले अभी बाकी हो, लेकिन सियासी गतिविधियों ने पहले ही चुनावी गर्मी बढ़ा दी है। एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों की खींचतान अब उस मोड़ पर पहुँच चुकी है जहाँ अंतिम फैसला तय होने जैसा माना जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यू) के बीच 243 सीटों में से लगभग 100-105 सीटों पर समान हिस्सेदारी की सहमति बन गई है। हालांकि, इस संतुलित समझौते के बावजूद एनडीए की मुश्किलें खत्म नहीं हुई हैं, क्योंकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) अभी भी तय संख्या को लेकर अड़ी हुई है। लोजपा(RV) का दावा है कि उसे कम से कम 40 सीटें मिलनी चाहिए, जबकि बातचीत में फिलहाल 20 सीटों तक का प्रस्ताव सामने आया है। यही मतभेद गठबंधन की सबसे बड़ी रुकावट बन गया है।
जनता की नजर में पुराने चुनाव की छवि
2020 के विधानसभा चुनाव में जनता ने एनडीए में शामिल दलों को अलग-अलग तरीक़े से परखा था। जद(यू) ने 115 और भाजपा ने 110 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। नतीजे में भाजपा को 74 सीटों के साथ बढ़त मिली थी, जबकि जद(यू) 43 पर सिमट गई थी। उसी चुनाव में लोजपा ने एनडीए का हिस्सा होते हुए भी जद(यू) के मुकाबले उम्मीदवार उतार दिए, जिससे गठबंधन की अंदरूनी फूट खुलकर सामने आई। दिलचस्प यह रहा कि लोजपा सूरज की तरह नहीं चमकी, मगर उसकी मौजूदगी ने जद(यू) के कई उम्मीदवारों की हार सुनिश्चित कर दी।
चिराग पासवान का बढ़ा आत्मविश्वास
2024 के लोकसभा चुनावों ने लोजपा (रामविलास) को नई ताकत दी है। चिराग पासवान के नेतृत्व में पार्टी ने लड़ी गई सभी 5 सीटें जीत लीं और पूरे राज्य में 6% से ज्यादा वोट हासिल किया। खास बात यह रही कि जिन संसदीय क्षेत्रों में जीत मिली, वहां के 30 विधानसभा क्षेत्रों में से 29 पर पार्टी आगे रही। इसी प्रदर्शन से उत्साहित लोजपा अब विधानसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी दोगुनी करना चाहती है।
भाजपा-जद(यू) का तालमेल और चुनौती
भाजपा और जद(यू) दोनों इस बार बराबरी के साथ मैदान में उतरने के मूड में हैं। जद(यू) 100 से कम सीटों पर मानने के लिए तैयार नहीं है और भाजपा भी इस चुनाव में स्वयं को प्रमुख खिलाड़ी के रूप में देखना चाहती है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि साथी दलों के बीच यह समीकरण जितना मजबूत होगा, उतना ही चुनावी नतीजे एनडीए के पक्ष में जाएंगे।
असली सवाल: जनता के लिए क्या मायने?
इन सभी दावों-प्रतिदावों के बीच आम मतदाता यह सवाल उठाने लगा है कि नेताओं की यह गणितीय खींचतान आखिर जनता के मुद्दों को कितना प्रभावित करेगी। सीटें किसके पास जाएंगी, यह तय होना बाकी है, पर इसका असर सीधा-सीधा उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया और विकास के वादों की प्राथमिकताओं पर पड़ेगा। चुनाव से पहले गठबंधन जितना एकजुट दिखेगा, जनता में उतना ही भरोसा बनेगा।
--Advertisement--