Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना के गाँवों में एक नई और खामोश क्रांति हो रही है। जिन महिलाओं को हमेशा घर और परिवार की देखभाल तक ही सीमित रखा गया, वे अब पंचायत की राजनीति में कदम रखने की तैयारी कर रही हैं। यह सब तेलंगाना सरकार के एक बड़े फ़ैसले की वजह से हो रहा है, जिसने स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग (BC) के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण लागू किया है। इस एक फ़ैसले ने कई मुस्लिम महिलाओं के लिए राजनीति के दरवाज़े खोल दिए हैं, जो पिछड़ा वर्ग की श्रेणियों में आती हैं।
अगले महीने होने वाले पंचायत चुनावों को लेकर महबूबनगर और दूसरे ज़िलों में अभी से हलचल तेज़ हो गई है। कल तक जो बात कोई सोच भी नहीं सकता था, वो अब हक़ीक़त बनने जा रही है—बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएँ चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हैं।
जड़चेरला मंडल की रहने वाली शबाना बेगम अपना नामांकन दाखिल करने की योजना बना रही हैं। वह कहती हैं, “पहले राजनीति सिर्फ़ मर्दों का काम समझी जाती थी। मुझ जैसी औरतों से उम्मीद की जाती थी कि वे बस घर और परिवार सँभालें। लेकिन इस आरक्षण के बाद मुझे पहली बार लग रहा है कि समाज में मेरी आवाज़ भी कोई मायने रखती है।”
महबूबनगर शहर की समीरा फ़ातिमा भी पहली बार चुनाव लड़ने जा रही हैं। उनकी बातों में एक नया आत्मविश्वास झलकता है। वह कहती हैं, “हम अपने बच्चों की देखभाल करते हैं, उनकी पढ़ाई देखते हैं, घर चलाते हैं, और यहाँ तक कि घर का बजट भी सँभालते हैं। अगर हम यह सब कर सकते हैं, तो सरकार क्यों नहीं चला सकते? मैं सिर्फ़ अपने लिए नहीं, बल्कि उन सभी मुस्लिम महिलाओं को हिम्मत देने के लिए चुनाव लड़ना चाहती हूँ जो आगे आना चाहती हैं।”
इस बदलाव को ज़मीनी स्तर पर देख रहे सामाजिक कार्यकर्ता नवीद खालिद इसे ‘लोकतंत्र का एक ऐतिहासिक मोड़’ कहते हैं। वे कहते हैं, “दशकों तक महिलाओं को फ़ैसले लेने की प्रक्रिया से दूर रखा गया। लेकिन आज सरकारी नीतियों और कल्याणकारी योजनाओं ने उन्हें इतनी ताक़त दी है कि मुस्लिम महिलाएँ न सिर्फ़ राजनीति में आ रही हैं, बल्कि इसे बदलने का इरादा भी रखती हैं। यह सिर्फ़ नाम की भागीदारी नहीं, बल्कि असली नेतृत्व की शुरुआत है।”
नवीद यह भी बताते हैं कि जन धन योजना, उज्ज्वला योजना और अटल पेंशन योजना जैसी स्कीमों ने महिलाओं को आर्थिक रूप से साक्षर और आत्मविश्वास से भरा बनाया है। “जब महिलाएँ शासन में आती हैं, तो स्वास्थ्य, सफ़ाई, शिक्षा और समाज कल्याण जैसे मुद्दे अपने आप प्राथमिकता बन जाते हैं। यही तो महिला नेतृत्व की असली ताक़त है,” वे कहते हैं।
यह बदलाव सिर्फ़ तेलंगाना तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश में 2023 के शहरी निकाय चुनावों में 61 मुस्लिम महिलाएँ जीती थीं। बिहार और असम में भी महिलाएँ स्वयं-सहायता समूहों के ज़रिए राजनीति में अपनी जगह बना रही हैं।
जैसे-जैसे तेलंगाना चुनावों की तैयारी कर रहा है, महबूबनगर की मुस्लिम महिलाएँ इस बदलाव की मशाल को थामने के लिए तैयार हैं। एक युवा पोस्ट-ग्रेजुएट आयशा परवीन चुनाव लड़ने के लिए उत्साहित हैं। वह कहती हैं, “हम बहुत लंबे समय तक चुप रहे हैं। अब वक़्त आ गया है कि हमारी सोच, हमारा संघर्ष और हमारा नज़रिया भी पंचायत के हॉल में दिखे।”
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