
Up Kiran, Digital Desk: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भयानक आतंकी हमले के बाद भारत ने न केवल आंतरिक स्तर पर सख्त कार्रवाई शुरू की है, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी अपनी बात मजबूती से रखने की शुरुआत कर दी है। इस दिशा में पहला बड़ा कदम विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर द्वारा अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से की गई बातचीत है।
जयशंकर ने अपने ट्वीट में स्पष्ट रूप से बताया कि उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री से इस हमले की गंभीरता पर चर्चा की और कहा कि “इस अपराध के दोषियों, उनके समर्थकों और योजनाकारों को न्याय के कटघरे में लाया जाना चाहिए।” यह भारत की ओर से एक सख्त संदेश था कि अब वह आतंकी घटनाओं को केवल निंदा तक सीमित नहीं रखेगा, बल्कि न्याय सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक सहयोग की अपेक्षा करेगा।
इस वार्ता से यह भी स्पष्ट हो गया है कि भारत अब केवल पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ एक संयुक्त वैश्विक दबाव बनाने की दिशा में बढ़ रहा है। जयशंकर के स्वर में जो तीव्रता थी, वह इस बात की गवाही देती है कि भारत अब अपने नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मानते हुए कड़ा रुख अपना चुका है।
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की प्रतिक्रिया: संवेदना और शांति का संदेश
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पहलगाम हमले को “भयानक और अमानवीय” करार देते हुए मृतकों के परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने भारत को आश्वासन दिया कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ भारत के प्रयासों में उसका पूर्ण समर्थन करेगा।
रुबियो की बातों में एक और पहलू था—उन्होंने भारत से आग्रह किया कि वह इस गंभीर स्थिति में संयम बनाए रखे और पाकिस्तान के साथ तनाव को बढ़ाने की बजाय क्षेत्रीय शांति बनाए रखने का प्रयास करे। यह अमेरिका की एक पुरानी नीति रही है कि वह दक्षिण एशिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों परमाणु शक्तियों के बीच संतुलन कायम करने की सलाह देता है।
हालांकि, भारत का वर्तमान रवैया इस बार थोड़ा अलग है। देश में आक्रोश और शोक की भावना इतनी गहरी है कि लोग सरकार से ठोस कार्रवाई की अपेक्षा कर रहे हैं। ऐसे में अमेरिका की “शांति बनाए रखें” वाली सलाह को भारतीयों द्वारा ‘दबाव कम करने’ के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।
वैश्विक समर्थन और मुस्लिम देशों की मध्यस्थता की कोशिश
इस हमले ने न केवल भारत को झकझोरा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी हिला दिया। खास बात यह रही कि कतर, सऊदी अरब और कुवैत जैसे मुस्लिम देशों ने भी इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दी और भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता जताई।
तीनों देशों ने संयम बरतने की अपील करते हुए कूटनीतिक हल निकालने की सलाह दी। कतर ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हर प्रकार के विवाद और संकट का समाधान संवाद और शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए ही संभव है।”
इन देशों की प्रतिक्रिया दो पहलुओं को उजागर करती है:
अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर इस्लामिक राष्ट्र, अब क्षेत्रीय तनावों के शांतिपूर्ण समाधान के पक्षधर बनते जा रहे हैं।
भारत की वैश्विक स्थिति इतनी मज़बूत हो चुकी है कि अब मुस्लिम देश भी आतंकवाद के विरुद्ध उसके साथ खड़े दिखते हैं, न कि पाकिस्तान के साथ।
यह बदलाव कूटनीतिक रूप से बेहद अहम है, क्योंकि यह भारत की वैश्विक स्वीकार्यता और आतंकवाद के खिलाफ उसके नैतिक नेतृत्व को दर्शाता है।
भारत की नीति: कूटनीतिक दबाव और सैन्य सतर्कता दोनों के साथ
भारत सरकार ने एक ओर जहां वैश्विक मंचों पर सक्रियता दिखाई है, वहीं दूसरी ओर सैन्य मोर्चे पर भी तैयारियों को बढ़ा दिया है। नियंत्रण रेखा (LoC) पर अतिरिक्त बलों की तैनाती, खुफिया निगरानी, और सीमा सुरक्षा में सुधार जैसे कदम तेज़ी से उठाए जा रहे हैं।
भारत जानता है कि वैश्विक समर्थन तभी मायने रखता है जब देश आंतरिक रूप से भी पूरी तरह तैयार हो। इस बार सरकार कूटनीतिक रणनीति के साथ-साथ ज़मीन पर भी ठोस कदम उठाने की दिशा में काम कर रही है।
यह संतुलन दिखाता है कि भारत एक परिपक्व राष्ट्र के तौर पर न केवल प्रतिक्रिया दे रहा है, बल्कि इस संकट को एक अवसर में बदलते हुए खुद को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करना चाहता है।
आगे की राह: क्या भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में फिर आएगा मोड़?
पहलगाम आतंकी हमला और उसके बाद की घटनाओं ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर तल्खी पैदा कर दी है। पाकिस्तान की ओर से अभी तक इस हमले पर कोई स्पष्ट निंदा नहीं आई है, जिससे भारत की नाराजगी और बढ़ गई है।
भारत ने इस बीच कई कूटनीतिक कदम उठाए हैं:
पाकिस्तानी राजनयिकों को तलब कर विरोध दर्ज कराना
सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति तेज करना
लेकिन क्या यह सब आने वाले समय में किसी ठोस परिवर्तन की ओर ले जाएगा? या यह सिर्फ एक और चक्र है जिसमें दोनों देश एक बार फिर तनाव से गुजरते हुए अंततः कूटनीतिक बातचीत की ओर लौटेंगे?
यह देखना बाकी है, लेकिन एक बात तय है—भारत अब आतंकवाद पर न तो चुप रहेगा, न ही सिर्फ बयानबाजी करेगा।
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