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राजनीतिक डेस्क। हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अब कांग्रेस के प्रदर्शन और राहुल गांधी के नेतृत्व पर चर्चा शुरू हो गई है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अब इण्डिया गठबंधन के सहयोगी कांग्रेस और राहुल गांधी पर दबाव बनाएंगे।  उनके नेतृत्व पर भी सवाल उठाएंगे। हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। पूर्व प्रधानंत्री और दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि मैंने बस एक चुनाव हारा है, लड़ाई जारी है। चुनाव हारने से लड़ाई खत्म नहीं होती। दरअसल, चुनाव हारना नई राजनीति की शुरुआत है।  

गौरतलब है कि जब जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव की तारीख़ों का एलान हुआ, तो कांग्रेस प्रचार और तैयारियों को लेकर आत्मविश्वास से परिपूर्ण थी। राहुल गांधी लगातार जीत के दावे कर रहे थे। मतदान से पांच दिन पहले राहुल गांधी ने एक्स पर एक पोस्ट लिखा था, 'हरियाणा में 'दर्द के दशक' का अंत करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी शक्ति के साथ एकजुट है, संगठित है, समर्पित है'। इस तस्वीर में राहुल गांधी के साथ भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा भी थी।

यही नहीं, विगत जून में लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद भी राहुल गांधी के तेवर आक्रामक नज़र आए। अग्निवीर, जातिगत जनगणना, पेंशन स्कीम, लेटरल एंट्री स्कीम समेत कई बुनियादी मुद्दों पर राहुल गांधी ने सरकार को सड़क से लेकर संसद तक घेरते हुए आक्रामक रुख अपनाया। लेटरल एंट्री स्कीम जैसे मुद्दों पर सरकार को पीछे हटना पड़ा था। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में कांग्रेस जीत के प्रति आश्वस्त थी।

लेकिन, हरियाणा के चुनाव में उम्मीद के विपरीत कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। पार्टी को यहां की 90 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 37 सीटें और 39% वोट हासिल हुए हैं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को जीत मिली है, लेकिन कांग्रेस के खाते में महज़ 6 सीटें ही आईं हैं। अब हरियाणा में हार के बाद कांग्रेस के प्रदर्शन और राहुल गांधी के नेतृत्व पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। 

ध्यातव्य है कि विगत लोकसभा में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन हरियाणा में राहुल गांधी पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। अब तमाम विश्लेषक कह रहे हैं कि सीधे मुकाबले में कांग्रेस बीजेपी के सामने कमजोर पड़ती है। लेकिन, इससे सब खत्म नहीं हो गया है। भाजपा का भी लगातार चुनाव हारने का रिकार्ड रहा है। राजनीति में चुनाव हारना हमेशा एक नई शुरुआत होती है। हालांकि हरियाणा चुनाव से राहुल गांधी के प्रदर्शन को नहीं आंका जा सकता।

यह सही है कि राहुल गांधी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं। पार्टी के मुख्य रणनीतिकार के साथ ही वह एक स्टार प्रचारक हैं। इसके साथ ही राहुल गांधी लोकसभा में नेता विपक्ष भी हैं। लोकसभा चुनाव के बाद वो काफी सक्रिय नज़र आए। जन मुद्दों पर राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमलावर रहते हैं। इसलिए अब हरियाणा में पार्टी के प्रदर्शन का असर राहुल गांधी की इंडिया गठबंधन में स्वीकार्यता पर भी पड़ सकता है।

हालांकि, कांग्रेस को नजदीक से जानने वाले विश्लेषकों का कहना है कि इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी की जिस तरह की छवि है, इस हार का उस पर कोई असर नहीं होगा। इंडिया गठबंधन इसे राहुल गांधी की नहीं भूपेंद्र हुड्डा की हार मानेगा। इन नतीजों के बाद भी राहुल गांधी के चुनावी तेवर, उनके लहज़े और सरकार पर कटाक्ष जारी रहेगा। लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में राहुल गांधी के सामने चुनौतियों में इजाफा होगा। टिकट बंटवारे में गठबंधन की पार्टियां कांग्रेस पर अधिक दबाव डालेंगी।    

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