Up kiran,Digital Desk : फौज में अक्सर एक कहावत कही जाती है- "हम साथ रहते हैं, साथ लड़ते हैं और साथ शहीद होते हैं।" लेकिन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) के कुछ जांबाज अफसरों ने इस कहावत को एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। उन्होंने अपने उस साथी का सपना पूरा करने का बीड़ा उठाया है, जो ट्रेनिंग के दौरान एक हादसे में शहीद हो गया था। यह दिल को छू लेने वाली और आंखें नम कर देने वाली कहानी है सैन्य भाईचारे की एक बेमिसाल मिसाल की।
यह कहानी है NDA के दिवंगत कैडेट प्रथम महाले की। प्रथम अपने ऑस्कर स्क्वाड्रन के कैडेट कैप्टन थे- तेज-तर्रार, होनहार और अपने सपनों को लेकर जुनूनी। लेकिन 16 अक्टूबर 2023 को एक बॉक्सिंग चैंपियनशिप के दौरान उनके सिर में एक गंभीर चोट लगी और दो दिन बाद वे इस दुनिया को अलविदा कह गए। यह घटना न सिर्फ उनके परिवार के लिए, बल्कि उनके पूरे बैच के लिए एक कभी न भरने वाला घाव था।
दोस्त तो चला गया, पर दोस्ती जिंदा रही
प्रथम की मौत के बाद भी उनके दोस्त, उनके बैचमेट्स उन्हें एक पल के लिए भी नहीं भूले। जब उनका बैच NDA से पास आउट होकर सशस्त्र बलों में अधिकारी बना, तो उन्होंने प्रथम के परिवार से संपर्क बनाए रखा। उन्होंने सिर्फ सांत्वना नहीं दी, बल्कि एक ऐसा कदम उठाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
उन्होंने प्रथम के माता-पिता को देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (IMA) की पासिंग आउट परेड के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया, ताकि वे देख सकें कि अगर आज प्रथम होता, तो वह भी उन्हीं की तरह देश की सेवा के लिए तैयार खड़ा होता। इसके बाद, ये सभी अफसर प्रथम के घर जलगांव भी पहुंचे।
जब सदमे में डूबी बहन के लिए 'भाई' बनकर खड़े हुए दोस्त
प्रथम का एक बहुत बड़ा सपना था- अपनी छोटी बहन रुजुता को डॉक्टर बनाना। जिस वक्त प्रथम NDA में ट्रेनिंग कर रहे थे, रुजुता मेडिकल की प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी में जी-जान से जुटी थी। लेकिन अपने प्यारे भाई की अचानक मौत ने उसे तोड़कर रख दिया। वह इतने गहरे सदमे में चली गई कि उसने अपनी पढ़ाई-लिखाई सब छोड़ दी।
जब प्रथम के दोस्तों को यह बात पता चली, तो उन्होंने फैसला किया कि वे अपने दोस्त का यह सपना मरने नहीं देंगे। वे सब रुजुता के लिए एक बड़ा सहारा बनकर खड़े हो गए। उन्होंने न सिर्फ उसे पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि परिवार को यह भरोसा भी दिलाया कि "भले ही आज प्रथम हमारे बीच नहीं है, लेकिन आप अकेले नहीं हैं। हम सब आपके साथ मजबूती से खड़े हैं।"
आज प्रथम के वही दोस्त, जो अब सेना में अफसर हैं, हर तरह से रुजुता की मदद कर रहे हैं, ताकि वह अपने भाई का अधूरा सपना पूरा कर सके और एक काबिल डॉक्टर बने। यह सिर्फ एक मदद नहीं, बल्कि एक शहीद दोस्त को दी गई सबसे सच्ची श्रद्धांजलि है।
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