
दक्षिण भारतीय सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और राजनीतिज्ञ कमल हासन ने हाल ही में एक बार फिर हिंदी भाषा को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदी को दूसरों पर थोपना मूर्खता है और इसका विरोध किया जाएगा। उनका यह बयान एक बार फिर देशभर में भाषा विवाद को हवा दे रहा है।
कमल हासन ने एक ट्वीट में कहा, "मातृभाषा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। अन्य भाषाओं को सीखना और उनका इस्तेमाल करना व्यक्तिगत पसंद से होता है। यही पिछले 75 सालों से दक्षिण भारत का अधिकार रहा है।" उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी का विकास करना और इसे दूसरों पर थोपना अज्ञानता है। उनका यह बयान तब आया जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत त्रिभाषा नीति लागू करने की बात की थी। प्रधान ने यह भी कहा था कि यदि कोई राज्य इसे लागू नहीं करता है तो उसे केंद्र से मिलने वाली सहायता में कटौती की जा सकती है।
कमल हासन ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तमिलनाडु के लोग अपनी मातृभाषा के लिए अपनी जान तक दे चुके हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इस मुद्दे से खेलना खतरनाक हो सकता है। उनका कहना था कि तमिलनाडु के लोग जानते हैं कि उन्हें कौन सी भाषा चाहिए और वे इसे चुनने का अधिकार रखते हैं।
इस बयान के बाद कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कमल हासन को फटकार लगाते हुए उनसे माफी मांगने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने कन्नड़ भाषा के बारे में जो टिप्पणी की है, वह गलत है और इससे कन्नड़ भाषियों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। हालांकि, कमल हासन ने माफी मांगने से इनकार कर दिया है और कहा है कि उनका बयान गलत तरीके से पेश किया गया है।
कमल हासन के इस बयान ने एक बार फिर हिंदी-तमिल विवाद को तूल दे दिया है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार हिंदी को थोपने की कोशिश कर रही है और यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता को बनाए रखने के लिए राज्यों को अपनी भाषाओं और संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार होना चाहिए।
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