Up Kiran, Digital Desk: मुंबई के बीएमसी चुनाव के लिए पंजीकरण प्रक्रिया मंगलवार से आरंभ हो गई है। इस बार का बीएमसी चुनाव बहुत अलग है। उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए उतावले हैं, तो बीजेपी एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ मिलकर सत्ता प्राप्त करना चाहती है।
महायुति के सहयोगी उपमुख्यमंत्री अजित पवार अकेले बीएमसी चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कांग्रेस ने महाविकास अघाड़ी से अलग होकर अपनी किस्मत आजमाने का निर्णय लिया है। क्या कांग्रेस और अजित पवार दोनों मुस्लिम मतों के लिए अपने गठबंधन से दूर हो गए हैं?
महाराष्ट्र में भले ही मुसलमानों की आबादी 12 प्रतिशत हो, मगर मुंबई में यह संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। मुंबई की राजनीति में मुसलमानों का प्रभाव महत्वपूर्ण माना जाता है। शहर के कई हिस्सों में मुस्लिमों का समर्थन प्राप्त किए बिना जीत हासिल करना संभव नहीं है। इस कारण बीएमसी चुनाव के लिए मुस्लिम मतों पर सभी की नजरें लगी हुई हैं।
मुंबई में मुस्लिम मतदाता कितने महत्वपूर्ण हैं?
मुंबई में 20 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता बीएमसी की 277 सीटों में से करीब 45 पार्षद सीटों पर चुनाव परिणाम तय करते हैं। इनमें से करीब 30 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ऐसे में मुंबई के कई इलाकों में मुस्लिमों का समर्थन बिना जीत हासिल करना मुश्किल होता है।
2017 के बीएमसी चुनाव में 31 मुस्लिम पार्षद विभिन्न दलों से जीतकर आए थे, जिनमें 11 कांग्रेस, 6 सपा, और 4 एनसीपी से थे। AIMIM से तीन, पांच निर्दलीय, और शिवसेना से दो पार्षद चुने गए थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि बीएमसी चुनाव में मुस्लिम मतदाता कितने अहम हैं।
मराठी और गैर-मराठी मुसलमानों में बंटवारा
मुंबई में रहने वाले मुसलमान दो गुटों में विभाजित हैं। यहां के मुस्लिमों की कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत उत्तर-भारतीय हैं, जबकि बाकी 30 प्रतिशत में मराठी, दक्षिण भारतीय, गुजराती और अन्य राज्यों के मुसलमान शामिल हैं। मराठी मुसलमानों का कुछ हिस्सा शिवसेना को समर्थन देता रहा है, जबकि गैर-मराठी मुसलमान कांग्रेस, सपा, और एनसीपी के पक्ष में रहते हैं।
कितने दल मुस्लिम मतों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं?
बीएमसी चुनाव के ऐलान के बाद से सभी प्रमुख दल मुस्लिम मतों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस, अजित पवार की एनसीपी, समाजवादी पार्टी (सपा), और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM सहित कई दल मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही शरद पवार की एनसीपी (एसपी) और दोनों शिवसेनाएं भी मुस्लिम मतों को लेकर चुपचाप सक्रिय हैं।
कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट कितने जरूरी हैं?
मुंबई में मुस्लिम वोटरों को साथ लाए बिना कांग्रेस बीएमसी पर अपनी पकड़ नहीं बना सकेगी। कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोटों की प्राथमिकता हमेशा रही है। कांग्रेस अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, और इसके लिए उसने उद्धव और राज ठाकरे के गठबंधन से खुद को अलग किया है ताकि मुस्लिम वोटों को एकजुट कर सके।
अजित पवार की रणनीति
अजित पवार ने नवाब मलिक को बीएमसी चुनाव प्रबंधन का जिम्मा सौंपकर कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने की योजना बनाई है। उत्तर भारतीय मुस्लिमों के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए उन्होंने बीएमसी चुनाव के लिए गठित कमेटी में केवल उत्तर भारतीय मुस्लिम नेताओं को जगह दी है। नवाब मलिक और जीशान सिद्दीकी जैसे चेहरे इन उत्तर भारतीय मुस्लिम नेताओं में शामिल हैं।
मुस्लिम वोटों के बिखराव का जोखिम
यदि मुस्लिम वोटों को एकजुट नहीं किया गया तो विपक्षी गठबंधन की रणनीति विफल हो सकती है। कांग्रेस से लेकर अजित पवार की एनसीपी तक और सपा से लेकर AIMIM तक सभी दल मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ करने के लिए कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा शरद पवार की एनसीपी और अजित पवार की एनसीपी भी दावा कर रही हैं। बीजेपी और दोनों शिवसेनाओं के पास भी मुस्लिम उम्मीदवारों को लेकर अपनी रणनीतियां हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस समय जो दल अलग-अलग अपने भाग्य आजमा रहे हैं, उससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा लगभग तय है। कुछ महीने पहले तक AIMIM को मुस्लिम वोटों के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा था, और अब सपा भी अकेले चुनावी मैदान में उतरने का प्रयास कर रही है।
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