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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्हें राजनीति के पारखी भी हमेशा कम आँकते रहे हैं। पाँच दशक से ज़्यादा लम्बे करियर में उन्होंने कई बार यह साबित किया है कि उन्हें ख़त्म मान लेना एक बड़ी भूल होती है। हर बड़े सियासी झटके के बाद वह और ज़्यादा मज़बूती के साथ उठ खड़े होते हैं। मंडल कमीशन की राजनीति से उपजे नेताओं में उनकी पहचान कुछ अलग रही है। अधिकतर समाजवादी धारा के नेताओं से हटकर नीतीश जी ने हमेशा शासन सुधार और राज्य के विकास को प्राथमिकता दी। हालांकि उनके विरोधी उन्हें अवसरवादी भी कहते रहे हैं।

चाणक्य नीति से बीजेपी को रोका

नीतीश कुमार की राजनीतिक सूझ बूझ का सबसे बड़ा नतीजा यह रहा कि आज तक भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी बिहार में अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई। यह बात तब भी सच रही जब हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 89 सीटें जीतीं जबकि उनकी पार्टी जेडीयू को 85 सीटें मिली थीं। बार-बार पाला बदलने के कारण उन्हें 'पलटू राम' का नाम भी मिला। लेकिन शासन व्यवस्था और प्रशासनिक सुधारों के लिए लोग उन्हें सुशासन बाबू भी कहते हैं।

2024 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू ने बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने बराबर सीटें जीतीं जबकि वह एक सीट कम ही लड़े थे। यही वजह रही कि केंद्र में भी बीजेपी को सरकार बचाने के लिए उनका समर्थन ज़रूरी हो गया।

सरकारी नौकरी ठुकरा कर जेपी आंदोलन में कूदे

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में हिस्सा लिया। लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के साथ उन्होंने आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। लेकिन चुनावी सफलता उनसे लंबे समय तक दूर रही। 1985 में वह पहली बार हरनौत से विधायक बने और चार साल बाद बरह लोकसभा सीट जीतकर दिल्ली पहुँचे। इसी बीच लालू प्रसाद बिहार की सत्ता के शिखर पर पहुँच चुके थे।

लालू प्रसाद से अलग होकर नीतीश कुमार ने समता पार्टी बनाई और धीरे-धीरे अपनी ज़मीन तैयार की। समता पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन किया। संसद में उनके कामकाज की काफ़ी तारीफ़ हुई। बाद में यह पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) में विलीन हो गई लेकिन बीजेपी के साथ उनका गठबंधन बना रहा।

2005 से शुरू हुआ नीतीश युग

बिहार में नीतीश युग की शुरुआत 2005 में हुई। पहले चुनाव में एनडीए बहुमत से चूक गया था और विवादों के कारण विधानसभा भंग हो गई थी। लेकिन दोबारा हुए चुनावों में जेडीयू और बीजेपी को शानदार जीत मिली। इसी के साथ लालू-राबड़ी शासन का अंत हुआ।

मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार के पहले पाँच साल सबसे सफल माने जाते हैं। उन्होंने कानून-व्यवस्था में बड़ा सुधार किया। सड़क बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को बेहतर बनाया। अति पिछड़ा और महा दलित को मान्यता देकर सामाजिक न्याय को एक नया रूप दिया। साथ ही लड़कियों को साइकिल और यूनिफॉर्म देने जैसी योजनाओं से वह पूरे राज्य में लोकप्रिय हो गए।

पाला बदलने का चक्र

2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के ख़िलाफ़ 17 साल पुराना बीजेपी गठबंधन तोड़ दिया।

2014 में हार की ज़िम्मेदारी लेकर इस्तीफ़ा दिया लेकिन कुछ ही महीनों बाद अपने सहयोगी जीतन राम मांझी को हटाकर फिर मुख्यमंत्री बन गए।

2015 में महागठबंधन के साथ चुनाव जीता। लेकिन 2017 में तेजस्वी यादव पर लगे आरोपों को बहाना बनाकर गठबंधन तोड़ा और 24 घंटे के अंदर फिर बीजेपी के साथ सरकार बना ली।

2022 में बीजेपी पर जेडीयू तोड़ने का आरोप लगाकर उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई। वह INDIA गठबंधन की नींव रखने वालों में भी शामिल थे।

लेकिन ठीक अपने पुराने अंदाज़ में 2024 आते-आते उन्होंने INDIA ब्लॉक को छोड़कर फिर से एनडीए का हाथ थाम लिया जहाँ उनका स्वागत हमेशा की तरह खुले दिल से हुआ।