
Up Kiran, Digital Desk: यह सिर्फ एक अवार्ड नहीं, बल्कि भारत के लाखों गांवों में शिक्षा की अलख जगाने वाले एक आंदोलन को मिला सम्मान है। भारत की गैर-लाभकारी संस्था 'एजुकेट गर्ल्स' ने प्रतिष्ठित रेमन मैगसायसाय पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया है, जिसे अक्सर "एशिया का नोबेल पुरस्कार" भी कहा जाता है। यह उस खामोश क्रांति की जीत है, जो देश के दूर-दराज के गांवों में उन बेटियों को वापस स्कूल ला रही है, जिनके लिए शिक्षा बस एक सपना बनकर रह गई थी।
एजुकेट गर्ल्स' की यह कहानी शुरू होती है उसकी संस्थापक सफीना हुसैन के एक बड़े सपने से। उन्होंने देखा कि भारत के गांवों में लाखों लड़कियां ऐसी हैं, जो या तो कभी स्कूल गईं ही नहीं, या फिर बीच में ही उनकी पढ़ाई छूट गई। उन्होंने इस चुनौती को एक मिशन बना लिया।
कैसे काम करता है 'एजुकेट गर्ल्स'?
इस संस्था का काम करने का तरीका जितना सरल है, उतना ही असरदार भी है।
सरकार के साथ साझेदारी: यह संस्था सरकारी स्कूलों के साथ मिलकर काम करती है ताकि व्यवस्था के अंदर रहकर ही सुधार लाया जा सके।
गांव-गांव में 'टीम बालिका': उन्होंने हर गांव में स्थानीय युवाओं की एक 'टीम बालिका' बनाई। ये वही लोग हैं जो घर-घर जाकर उन परिवारों को समझाते हैं जो अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजते। वे शिक्षा का महत्व बताते हैं और माता-पिता का भरोसा जीतते हैं।
टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: सबसे बड़ी क्रांति इन्होंने टेक्नोलॉजी के जरिए की। 'एजुकेट गर्ल्स' ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल करके भारत के उन गांवों की पहचान की, जहां स्कूल न जाने वाली लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा थी। इससे उन्हें अपनी ऊर्जा और संसाधन सही जगह लगाने में मदद मिली।
इस मेहनत का नतीजा हैरान करने वाला है। 'एजुकेट गर्ल्स' ने अब तक 15 लाख से ज्यादा लड़कियों को स्कूलों में फिर से दाखिला दिलाया है और कुल मिलाकर 1.5 करोड़ से ज्यादा बच्चों की शिक्षा पर सकारात्मक असर डाला है।
इस ऐतिहासिक जीत पर, संस्थापक सफीना हुसैन ने कहा, "यह सम्मान सिर्फ हमारा नहीं, बल्कि उन 21,000 'टीम बालिका' स्वयंसेवकों का है, जो हर दिन, हर मौसम में घर-घर जाकर शिक्षा की रौशनी फैला रहे हैं।"
यह पुरस्कार भारत के लिए एक गर्व का क्षण है। यह बताता है कि जब जुनून, समुदाय की ताकत और टेक्नोलॉजी एक साथ मिल जाएं, तो समाज में कितना बड़ा और सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है।
--Advertisement--