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हर साल 15 अगस्त को जब भारत स्वतंत्रता दिवस की उमंग में डूबा होता है, तब शायद ही कोई सोचता है कि इस ऐतिहासिक दिन के पीछे कितनी पीड़ा और बंटवारे का दर्द भी छिपा है। आज़ादी का वह क्षण, जिसने करोड़ों भारतीयों को विदेशी शासन से मुक्ति दी, वहीं लाखों लोगों को अपने घर, जमीन और पहचान तक खोने पर मजबूर कर गया।
धार्मिक रेखा पर खिंची सरहदें और उनकी कीमत
1947 में भारत का विभाजन एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी, जिसने सिर्फ भौगोलिक सीमाएं नहीं बदलीं, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी हमेशा के लिए झकझोर दिया। धर्म के आधार पर बने नए राष्ट्र पाकिस्तान ने लाखों लोगों की किस्मत बदल दी। लाखों मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए और उतनी ही संख्या में हिंदू और सिख पाकिस्तान से भारत आए। इस दौरान एक ऐसा मानवीय संकट सामने आया जिसे इतिहास आज भी शर्म के साथ याद करता है।
पाकिस्तान में हिंदू आबादी: आंकड़ों की नजर में
अगर आज के संदर्भ में बात करें तो पाकिस्तान सरकार का दावा है कि मुस्लिमों के बाद हिंदू देश का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है। लेकिन विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों, जैसे कि यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम और पाकिस्तान ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स, की मानें तो 2017 में पाकिस्तान की कुल आबादी लगभग 20.77 करोड़ थी, जिसमें 96.3 प्रतिशत मुस्लिम, 1.6 प्रतिशत हिंदू, और 1.5 प्रतिशत ईसाई थे। अहमदिया, सिख, बौद्ध और अन्य धर्मों की संख्या इससे भी कम रही।
उमरकोट: जहां आज भी हिंदू बहुल हैं
पाकिस्तान के सिंध प्रांत का उमरकोट जिला एक अनोखा उदाहरण है, जहां आज भी हिंदू आबादी बहुसंख्यक है। यहां लगभग 52 प्रतिशत लोग हिंदू हैं, जो वहां की सांस्कृतिक विविधता की झलक देते हैं। विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या करीब 40 लाख थी, लेकिन तब कितने हिंदू भारत से पाकिस्तान गए, इसका कोई पुख्ता रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
विभाजन के बाद भारत में बचे मुसलमान
वहीं भारत की बात करें तो 1947 में लगभग 3.54 करोड़ मुसलमान देश में ही रह गए थे। अविभाजित भारत में कुल मुस्लिम आबादी लगभग 7.44 करोड़ थी, जिनमें से 3.90 करोड़ के करीब लोग पाकिस्तान चले गए। इसका मतलब यह भी है कि भारत ने मुसलमानों की एक बड़ी आबादी को अपने साथ बनाए रखा, जो आज देश की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता का अभिन्न हिस्सा हैं।
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