Up Kiran, Digital Desk: अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कच्चे तेल के व्यापार में हो रही खींचतान का असर अब सीधे भारतीय उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ रहा है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद वैश्विक ऊर्जा बाजार में एक बार फिर से हलचल तेज हो गई है। नई अमेरिकी नीति के तहत यदि भारत रूस से तेल आयात जारी रखता है, तो उस पर भारी टैक्स और अतिरिक्त जुर्माने की चेतावनी दी गई है। इसके बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीद बंद करने से साफ इनकार कर दिया है।
कूटनीति के दांव-पेच से जनता की जेब तक
भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग केवल रणनीतिक साझेदारी नहीं, बल्कि देश की ऊर्जा जरूरतों की रीढ़ है। ऐसे में अमेरिका की सख्त चेतावनियों के बावजूद भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता दी है। लेकिन सवाल यह है कि इन अंतरराष्ट्रीय खींचातान का असर आम भारतीय नागरिक पर कैसे पड़ता है?
भारत में हर दिन पेट्रोल-डीजल की खपत लाखों लीटर में होती है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार, मई 2024 में देश ने कुल 3.45 मिलियन टन पेट्रोल खपत किया। इसे बैरल में गिनें तो यह लगभग 2.91 करोड़ बैरल के आसपास है। एक बैरल में लगभग 159 लीटर होते हैं, यानी कुल खपत करीब 463 करोड़ लीटर से भी अधिक रही।
एक दिन में कितनी खपत?
अगर महीने के 31 दिनों के हिसाब से इसे बांटें, तो भारत हर दिन करीब 15 करोड़ लीटर पेट्रोल की खपत करता है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, डीजल और पेट्रोल मिलाकर यह संख्या लगभग 795 मिलियन लीटर प्रतिदिन तक जाती है।
आम आदमी कितना ईंधन जलाता है?
एक आम भारतीय महीने में औसतन 2.8 लीटर पेट्रोल और करीब 6.3 लीटर डीजल खर्च करता है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भले ही प्रति व्यक्ति खपत सीमित हो, लेकिन देश की विशाल जनसंख्या के चलते कुल मिलाकर खपत बेहद ऊंची हो जाती है।
टैक्स का बोझ कितना भारी?
पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा कीमत में लगभग 55% हिस्सा टैक्स का होता है। केंद्र सरकार पेट्रोल पर ₹21.90 और डीजल पर ₹17.80 प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूलती है, जबकि राज्य सरकारें अलग से वैट लगाती हैं। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली सरकार पेट्रोल पर ₹15.39 और डीजल पर ₹12.83 का वैट वसूलती है। इसका सीधा असर आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है।
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