
Up Kiran, Digital Desk: भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति चुनाव अक्सर एक औपचारिक प्रक्रिया माने जाते हैं, जहाँ सत्ताधारी गठबंधन का उम्मीदवार आसानी से जीत दर्ज कर लेता है। हालांकि, 2007 में ऐसा नहीं हुआ था। उस वर्ष, भारत ने एक दुर्लभ त्रिकोणीय मुकाबले का गवाह बना, जिसने राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मचा दी थी। यह चुनाव इसलिए भी खास था क्योंकि इसमें तीन प्रमुख उम्मीदवार मैदान में थे, जिससे यह एक 'त्रि-कोणीय प्रतियोगिता' बन गई थी।
2007 का 'त्रिकोणीय' उपराष्ट्रपति चुनाव: एक दुर्लभ घटना
2007 में भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव एक असामान्य और प्रतिस्पर्धी माहौल में हुआ था। इस चुनाव में तीन प्रमुख उम्मीदवार थे:
मोहम्मद हामिद अंसारी: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के उम्मीदवार थे।
नजमा हेपतुल्ला: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की उम्मीदवार थीं।
रशीद मसूद: समाजवादी पार्टी (SP) के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में उतरे थे।
यह मुकाबला इसलिए भी दुर्लभ माना गया क्योंकि आम तौर पर उपराष्ट्रपति चुनाव में मुख्य रूप से दो ही उम्मीदवार होते हैं – एक सत्ताधारी गठबंधन का और दूसरा विपक्षी गठबंधन का। लेकिन 2007 में, समाजवादी पार्टी द्वारा एक तीसरे उम्मीदवार को मैदान में उतारने से चुनाव त्रिकोणीय हो गया था।
चुनाव का परिणाम और हामिद अंसारी की जीत
इस त्रिकोणीय मुकाबले में, मोहम्मद हामिद अंसारी ने शानदार जीत हासिल की। उन्हें 349 मत मिले, जबकि नजमा हेपतुल्ला को 201 मत प्राप्त हुए। रशीद मसूद को 72 मत मिले। इस जीत के साथ, मोहम्मद हामिद अंसारी भारत के 12वें उपराष्ट्रपति बने।
यह चुनाव भारतीय संसद के सदस्यों (लोकसभा और राज्यसभा दोनों के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य) द्वारा सांसद की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (single transferable vote system) के माध्यम से किया गया था। इस परिणाम ने न केवल संसदीय राजनीति में गठबंधन की शक्ति को दर्शाया, बल्कि यह भी साबित किया कि अप्रत्याशित गठबंधन और उम्मीदवार भी महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाइयां लड़ सकते हैं।
इस चुनाव का महत्व: 2007 का उपराष्ट्रपति चुनाव भारतीय लोकतंत्र की विविधता और गठबंधनों की जटिलताओं का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इसने दिखाया कि कैसे संसद के भीतर विभिन्न राजनीतिक विचार एक साथ आ सकते हैं और सामूहिक रूप से निर्णय ले सकते हैं। इस चुनाव ने भारत के उपराष्ट्रपति पद की गरिमा और भूमिका को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
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