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Up Kiran, Digital Desk: भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र एक नई और गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है: मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन (Metabolic Dysfunction) की व्यापकता। एक चौंकाने वाले खुलासे में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक मंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत में हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन से प्रभावित है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान (Mass Awareness Campaign) की तत्काल आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। यह स्थिति भारत के स्वास्थ्य ढांचे और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक गंभीर खतरे का संकेत है।

क्या है मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन या मेटाबॉलिक सिंड्रोम?
मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome) कोई एक बीमारी नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य समस्याओं का एक समूह है जो एक साथ होने पर हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को काफी बढ़ा देता है। इसमें आमतौर पर निम्नलिखित में से कोई भी तीन या अधिक स्थितियां शामिल होती हैं:

पेट का मोटापा (Abdominal Obesity): कमर के आसपास अत्यधिक वसा का जमाव।

उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure/Hypertension): बढ़ा हुआ रक्तचाप।

उच्च रक्त शर्करा (High Blood Sugar): उपवास के दौरान रक्त में शर्करा का उच्च स्तर या मधुमेह।

उच्च ट्राइग्लिसराइड्स (High Triglycerides): रक्त में वसा का उच्च स्तर।

कम एचडीएल कोलेस्ट्रॉल (Low HDL Cholesterol): 'अच्छा' कोलेस्ट्रॉल का कम स्तर।

ये स्थितियां अक्सर एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं, जिससे समस्या और भी गंभीर हो जाती है। यह एक खामोश किलर (Silent Killer) है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण अक्सर स्पष्ट नहीं होते, और लोग तब तक इसका पता नहीं लगा पाते जब तक कि समस्या गंभीर न हो जाए।

भारत में बढ़ती चिंता का कारण: भारत में मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन की बढ़ती व्यापकता के पीछे कई कारण हैं:

बदलती जीवनशैली (Changing Lifestyle): शहरीकरण, गतिहीन जीवनशैली (Sedentary Lifestyle) और शारीरिक गतिविधियों में कमी।

आहार संबंधी बदलाव (Dietary Changes): पारंपरिक स्वस्थ आहार से हटकर प्रसंस्कृत भोजन (Processed Foods), मीठे पेय और अस्वास्थ्यकर वसा का अधिक सेवन। जंक फूड (Junk Food) और अत्यधिक चीनी का सेवन इसका प्रमुख कारण है।

आनुवंशिक प्रवृत्ति (Genetic Predisposition): भारतीयों में कुछ हद तक मेटाबॉलिक समस्याओं और मधुमेह के प्रति आनुवंशिक प्रवृत्ति अधिक होती है।

तनाव (Stress): आधुनिक जीवन का बढ़ता तनाव भी मेटाबॉलिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।

पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors): वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक भी इन बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जुड़े हो सकते हैं।

यह स्थिति देश में गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases - NCDs) के बोझ को तेज़ी से बढ़ा रही है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली (Public Health System India) पर भारी दबाव पड़ रहा है।

परिणाम और जोखिम: यदि मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन को अनुपचारित छोड़ दिया जाए, तो इसके गंभीर स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं:

टाइप 2 मधुमेह (Type 2 Diabetes): यह सबसे आम परिणाम है।

हृदय रोग (Heart Disease): दिल का दौरा (Heart Attack) और स्ट्रोक (Stroke) का जोखिम बढ़ जाता है।

फैटी लिवर रोग (Fatty Liver Disease): गैर-अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग (NAFLD) की संभावना बढ़ जाती है।

किडनी रोग (Kidney Disease): किडनी की कार्यप्रणाली प्रभावित हो सकती है।

कुछ प्रकार के कैंसर (Certain Cancers): कुछ अध्ययनों से पता चला है कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।

जागरूकता की तत्काल आवश्यकता: मंत्री का बयान बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य जागरूकता (Health Awareness India) की आवश्यकता पर बल देता है। अधिकांश लोग यह नहीं जानते कि वे इस सिंड्रोम से प्रभावित हैं क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण अस्पष्ट होते हैं। प्रारंभिक पहचान (Early Detection) और हस्तक्षेप इस समस्या को नियंत्रित करने की कुंजी है।

नियमित जांच (Regular Check-ups): 30 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से रक्तचाप, रक्त शर्करा, कोलेस्ट्रॉल और कमर का माप करवाते रहें।

स्वस्थ और संतुलित आहार (Healthy and Balanced Diet): प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से बचें, फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं। चीनी और नमक का सेवन कम करें।

नियमित शारीरिक गतिविधि (Regular Physical Activity): प्रतिदिन कम से कम 30-45 मिनट मध्यम-तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि करें, जैसे चलना, जॉगिंग, योग या साइकिल चलाना।

वजन प्रबंधन (Weight Management): स्वस्थ वजन बनाए रखें। यदि आप अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं, तो धीरे-धीरे वजन कम करने का प्रयास करें।

तनाव प्रबंधन (Stress Management): तनाव को कम करने के लिए योग, ध्यान या अन्य विश्राम तकनीकों का अभ्यास करें।

पर्याप्त नींद (Adequate Sleep): हर रात 7-8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद लें।

धूम्रपान और शराब से बचें (Avoid Smoking and Excessive Alcohol): ये दोनों आदतें मेटाबॉलिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं।

सरकार, स्वास्थ्य संगठन, मीडिया और नागरिक समाज को मिलकर एक राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन (Jan Andolan) शुरू करने की आवश्यकता है ताकि लोगों को मेटाबॉलिक डिस्फंक्शन के खतरों और उससे बचने के तरीकों के बारे में शिक्षित किया जा सके। डिजिटल स्वास्थ्य (Digital Health India) प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का उपयोग करके इस संदेश को हर घर तक पहुंचाया जा सकता है।

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