img

Up Kiran, Digital Desk: आज जब हम नीरज चोपड़ा को भाला फेंकते या अपनी क्रिकेट टीम को दुनिया पर राज करते देखते हैं, तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। खेलों में हमारी सफलता की भूख बढ़ रही है और हर कोई चाहता है कि भारत ओलिंपिक की मेडल लिस्ट में टॉप पर हो। लेकिन सवाल यह है कि हम इस सपने को हकीकत में कैसे बदल सकते हैं? इसका जवाब सिर्फ खिलाड़ियों की मेहनत में नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति में छिपा है, जो हमारे देश की 'राष्ट्रीय खेल नीति' से मेल खाती हो।

सफलता की नींव: स्कूल और पड़ोस से शुरुआत

किसी भी बड़े खिलाड़ी की कहानी उसके बचपन से शुरू होती है। अगर हमें भविष्य के चैंपियन तैयार करने हैं, तो हमें खेलों को स्कूलों और गली-मोहल्लों तक पहुंचाना होगा। बच्चों को सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि खेलने-कूदने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा। जब तक खेल हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं बनेगा और हर बच्चे को खेलने का मौका नहीं मिलेगा, तब तक हम टैलेंट की पहचान कैसे करेंगे?

कॉर्पोरेट इंडिया का साथ क्यों है जरूरी?

सरकार अपनी तरफ से कोशिश कर रही है, लेकिन इतने बड़े देश में हर कोने तक पहुंचना आसान नहीं है। यहीं पर कॉर्पोरेट कंपनियों की भूमिका अहम हो जाती है। कंपनियों को अपने सीएसआर (CSR) फंड का इस्तेमाल सिर्फ कुछ बड़े खेलों पर नहीं, बल्कि उन छोटे-छोटे स्पोर्ट्स पर भी करना चाहिए जिन्हें ज्यादा पहचान नहीं मिलती। स्थानीय स्तर पर टूर्नामेंट करवाना, अकादमियां खोलना और युवा टैलेंट को गोद लेना - ये कुछ ऐसे कदम हैं जो खेल की दुनिया में क्रांति ला सकते हैं।

खिलाड़ियों को चाहिए सिर्फ हौसला नहीं, सपोर्ट भी

एक खिलाड़ी को तैयार करने में सालों की मेहनत लगती है। उसे अच्छे कोच, बेहतर ट्रेनिंग की सुविधा और चोट लगने पर सही मेडिकल देखभाल की जरूरत होती है। राष्ट्रीय खेल नीति भी इसी बात पर जोर देती है कि हमारे एथलीटों को दुनिया की सबसे अच्छी सुविधाएं मिलें। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी प्रतिभाशाली खिलाड़ी का करियर पैसों की कमी या सुविधाओं के अभाव में खत्म न हो जाए।

सबका साथ, सबका विकास; यह मिशन सिर्फ सरकार या खिलाड़ियों का नहीं है। इसे एक राष्ट्रीय आंदोलन बनाना होगा। जब माता-पिता, स्कूल, कंपनियां और खेल संघ मिलकर काम करेंगे, तभी हम भारत को एक 'स्पोर्टिंग नेशन' बना पाएंगे। हमें एक ऐसा माहौल तैयार करना है, जहां खेलना सिर्फ एक हॉबी नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक करियर माना जाए।

अगर हम सब मिलकर राष्ट्रीय खेल नीति के विजन को जमीन पर उतार पाएं, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं, बल्कि हर खेल में दुनिया पर राज करेगा।