_1789899438.png)
Up Kiran, Digital Desk: सीतापुर जिले में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए शिक्षा और पुनर्वास की सुविधाएं न के बराबर हैं। ऐसे में न सिर्फ उनके भविष्य पर संकट मंडरा रहा है बल्कि उनके अभिभावक भी सिस्टम की बेरुखी से बेहद आहत हैं। सरकार द्वारा दिव्यांगजनों के सशक्तिकरण की बात तो की जाती है मगरज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नज़र आती है।
शिक्षा से वंचित व्यवस्था से परेशान
जनपद में 307 से अधिक दृष्टिबाधित बच्चों की पहचान हुई है मगरइन बच्चों के लिए न तो कोई विशेष विद्यालय है और न ही समावेशी शिक्षा की ठोस व्यवस्था। सामान्य स्कूलों में ब्रेल लिपि की किताबें प्रशिक्षित शिक्षक या सहायक उपकरणों का घोर अभाव है। नतीजा यह होता है कि ये बच्चे अपने घरों में कैद होकर रह जाते हैं शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागज़ों पर सीमित रह जाता है।
अभिभावक बताते हैं कि वे अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं मगरजिले में ऐसी कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है जो उन्हें उम्मीद दे सके। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि विशेष शिक्षा के लिए निजी विकल्प उनकी पहुंच से बाहर हैं।
कोरोना के बाद ठप पड़े विशेष शिक्षण शिविर
कोविड-19 महामारी से पहले जिले में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए "त्वरित शिक्षण शिविर" संचालित किए जाते थे। ये आवासीय शिविर बच्चों को ब्रेल लिपि में शिक्षा देने के साथ तकनीकी प्रशिक्षण भी प्रदान करते थे। मगरवर्ष 2020 में महामारी के कारण इन्हें बंद कर दिया गया और आज तक दोबारा शुरू नहीं किया गया। शिविर बंद होने से करीब 60 बच्चों की शिक्षा बाधित हो गई।
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी प्रमोद गुप्ता ने जानकारी दी कि अब इन बच्चों को सामान्य स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है और हर ब्लॉक में एक-एक विशेष शिक्षक तैनात किया गया है। हालांकि ये दावा ज़मीनी स्थिति से मेल नहीं खाता क्योंकि अधिकांश अभिभावक इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं।
सरकारी उदासीनता: एक गहरी चिंता
जिले में दृष्टिबाधित बच्चों के लिए न कोई सरकारी स्कूल है न व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र और न ही सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की ओर से भी कोई ठोस पहल देखने को नहीं मिल रही है। योजनाएं तो हैं मगरउनका क्रियान्वयन ढीला है और बजट का उपयोग भी सवालों के घेरे में है।
अभिभावकों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह दृष्टिबाधित बच्चों के लिए आवासीय विद्यालयों की स्थापना करे विशेष शिक्षकों की नियुक्ति हो और ब्रेल सामग्री ऑडियो बुक्स व सहायक तकनीकों को आम किया जाए। इसके साथ ही समावेशी शिक्षा को मज़बूती दी जाए ताकि ये बच्चे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
उम्मीद का नाम: सीतापुर आंख अस्पताल
सरकारी उपेक्षा के बीच सीतापुर का प्रसिद्ध आंख अस्पताल एक सकारात्मक उदाहरण बनकर सामने आया है। यह संस्थान आंशिक रूप से दृष्टिबाधित बच्चों की आंखों की जांच इलाज और तकनीकी सहायता के माध्यम से उनके जीवन में नया उजाला ला रहा है। यहां ब्रेल डिस्प्ले स्पीकिंग बुक्स मैग्नीफाइंग डिवाइस और स्क्रीन रीडर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से बच्चों की शिक्षा और दैनिक जीवन आसान बनाया जा रहा है।
अस्पताल की टीमें नियमित रूप से जागरूकता कार्यक्रम भी चलाती हैं जिसमें अभिभावकों को बताया जाता है कि कैसे वे अपने बच्चों की शिक्षा और देखभाल बेहतर ढंग से कर सकते हैं। यह प्रयास सराहनीय हैं मगरअकेले अस्पताल के भरोसे पूरे जिले के बच्चों का भविष्य नहीं संवारा जा सकता।
“हमारी भी सुनिए…”: पीड़ित अभिभावकों की आवाज़
रिंकी कहती हैं “जिले में हमारे बच्चों के लिए सरकार की ओर से कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। हमें बस एक अवसर चाहिए ताकि हमारे बच्चे भी पढ़-लिख सकें।”
सुल्तान जिनके बेटे की आंखें जन्म से ही नहीं देख पातीं कहते हैं “कई डॉक्टरों से दिखाया कोई लाभ नहीं हुआ। पढ़ाना चाहता हूं मगरसरकारी स्कूल नहीं है।”
रेशमा जिनके बच्चे को मोतियाबिंद है कहती हैं “अस्पताल ने इलाज तो किया मगरशिक्षा और प्रशिक्षण के नाम पर कुछ नहीं है।”
--Advertisement--