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Up Kiran, Digital Desk: जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (पीके) ने बिहार की सासाराम स्थित करगहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का संकेत दिया है, जिससे राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है। पहले, पीके राघोपुर (जहां तेजस्वी यादव का प्रभाव है) से चुनाव लड़ने का विचार कर रहे थे, लेकिन अब वह अपनी जड़ें और जनता से जुड़ाव के आधार पर करगहर को अपना चुनावी मैदान बनाने की योजना बना रहे हैं। सवर्ण बहुल इस क्षेत्र को पीके के लिए एक सुरक्षित सीट माना जा रहा है।

बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में प्रस्तावित हैं, और जनसुराज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पीके ने खुद चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर दी है। चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने पीके का यह कदम राजनीति में उनकी ताकत और सशक्त उपस्थिति को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

करगहर क्यों है पीके के लिए एक सुरक्षित चुनावी क्षेत्र?

जनसंख्या और जातीय समीकरण
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार करगहर विधानसभा में लगभग 3.3 लाख वोटर हैं। चाणक्य की रिपोर्ट के अनुसार यहां पर ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार ब्राह्मण समुदाय का दबदबा है। इन समुदायों के पास कुल वोटों का लगभग 20% हिस्सा है। इसके अतिरिक्त, कुर्मी-कोइरी और रविदास जातियों का भी अहम योगदान है। इन जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पीके करगहर को अपनी जीत के लिए एक मुफीद सीट मान रहे हैं। विशेषकर ब्राह्मण समुदाय से होने के कारण पीके को यहां पर सवर्ण और दलित वोटों का समर्थन मिल सकता है।

कांग्रेस की कमजोर स्थिति और पीके का फायदा
पिछली बार कांग्रेस के संतोष मिश्रा ने करगहर सीट पर 5,000 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस यहां पिछड़ गई थी। यह संकेत है कि कांग्रेस के पुराने वोट बैंक में भी कमी आ रही है। सासाराम क्षेत्र में कांग्रेस के खिलाफ गुस्से को भुनाकर, पीके यहां से अपनी राजनीतिक चाल चलने की तैयारी में हैं। कांग्रेस द्वारा सासाराम में अपनी स्थिति को फिर से मजबूत करने की कोशिश के बावजूद, करगहर की सीट पर पीके को फायदा हो सकता है।

सवर्ण समुदाय और बीजेपी का असर
बिहार में सवर्ण समुदाय को भारतीय जनता पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। 2020 के विधानसभा चुनावों में 58% सवर्ण वोटers ने एनडीए को समर्थन दिया था, और इनमें से 23 विधायक बीजेपी से थे। दिलचस्प बात यह है कि करगहर सीट पर बीजेपी ने कभी अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। यह सीट जेडीयू के पास है, और पिछली बार यहां जेडीयू के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे। पीके की पार्टी को यह सीट भी अपने लिए सुरक्षित नजर आ रही है, क्योंकि जेडीयू ने यहां अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा नहीं की है।

राघोपुर सीट पर चुनौतियाँ और संभावित नुकसान

पीके के लिए राघोपुर सीट पर चुनाव लड़ना एक बड़ा जोखिम हो सकता है, खासकर यदि बीजेपी के साथ उनके गठबंधन की आलोचना होती है। तेजस्वी यादव की मजबूत पकड़ वाले राघोपुर में बीजेपी या जेडीयू से उनका जुड़ाव विरोधियों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। साथ ही, पीके के लिए यह भी चिंता का विषय हो सकता है कि चुनावी प्रचार में महागठबंधन से टकराव न हो, जिससे उनकी पार्टी को बिहार के अन्य हिस्सों में नुकसान हो।

जनसुराज पार्टी की व्यापक चुनावी तैयारी

प्रशांत किशोर ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है और पार्टी की रणनीति भी तैयार कर ली है। जनसुराज पार्टी ने बड़े नेताओं के लिए सीटों की मैपिंग शुरू कर दी है, और यह भी तय किया गया है कि प्रमुख नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा जाएगा। पार्टी के सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह और प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती को भी चुनाव लड़ाने की योजना बनाई गई है।

इसके अलावा, जनसुराज पार्टी 40 ऐसी सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां किसी भी स्थिति में पार्टी को जीत सुनिश्चित करनी है। पीके खुद भी अपनी पार्टी की शानदार सफलता का दावा कर चुके हैं और यह चुनाव उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है।

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