धर्म डेस्क। पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध-तर्पण अनुष्ठान हो रहे हैं। पितृपक्ष में पितृलोक के देवता अर्यमा का आह्वान किया जाता है। अर्यमा सूर्य से सम्बधित देवता हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृ देवता का अधिकार सुबह और रात्रि के चक्र पर है। पितृलोक में अर्यमा सभी पितरों के अधिपति हैं और वो सभी पितरों के कुल-परिवार की जानकारी रखते हैं। ऋषि कश्यप और अदिति के पुत्र थे। पितरों में श्रेष्ठ अर्यमा आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पृथ्वी पर विचरण करते हैं।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार पितरों के देव अर्यमा का निवास लोक उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र है। इनकी गणना नित्य पितरों में की जाती है। अर्यमा के प्रसन्न होने पर पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है। विद्वानों के अनुसार यज्ञ में पितृदेव मित्र (सूर्य) एवं वरुण (जल) देवता के साथ स्वाहा का 'हव्य' और श्राद्ध में स्वधा का 'कव्य' दोनों स्वीकार करते हैं।
पितृपक्ष में पितृ तर्पण इस मंत्र - 'ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः।...ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय' के साथ करना चाहिए। इससे पितरों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। पितर अपने पुत्र, पुत्रियों एवं पौत्रों के द्वारा किया गया श्राद्ध का अंश स्वीकार कर पुष्ट होते हैं। श्राद्ध कर्म कुल के लिए कल्याणकारी माना गया है। श्राद्ध न करने वाले लोगों के पितृ उनके दरवाजे से दुखी होकर वापस चले जाते हैं। ऐसे लोग पितरों के श्राप से सदैव दुखी रहते हैं।
पितृपक्ष में पितरों का तर्पण आवश्यक है। गरूड़, ब्रह्म, विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत में श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विस्तार से मिलता है। विश्व भर में फैले सनातन धर्मावलंबी पितृपक्ष में शास्त्रों में वर्णित नियमों का पालन करते हुए श्राद्ध कर्म करते हैं। यूरोप और अमेरिका में बसे प्रवासी भारतीय सामूहिक रूप से एक जगह एकत्र होकर श्राद्ध आदि करते हैं।
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