लोकसभा इलेक्शन में चंद महीने शेष हैं। इस चुनाव की तैयारी सबसे पहले शुरू करने वाली भाजपा ने भारत अघाड़ी को हराने की पूरी तैयारी कर ली है। भले ही इलेक्शन दो महीने दूर हो, मगर इंडिया अलायंस में सीटों के बंटवारे को लेकर अभी तक कुछ तय नहीं हुआ है।
तो उम्मीदवार कैसे तैयारी करेंगे, भाजपा के विरूद्ध माहौल कैसे बनेगा, कौन सी सीटें मिलेंगी आदि कई सवाल हैं। इस तरह नीतीश कुमार एक अलग ही गेम खेलने में लग गए हैं और सवाल ये है कि वो नेतृत्व कर रहे हैं या नहीं।
गठबंधन में शामिल पार्टियों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। यही वजह है कि सीट बंटवारे पर उनकी बदनामी हो रही है। कांग्रेस अपने कुछ सदस्यों को दूसरी पार्टियों को नहीं देना चाहती बल्कि अपनी ताकत का इस्तेमाल कर अपने सांसदों की संख्या 50 तक बढ़ाना चाहती है। जबकि अन्य दल अपना अस्तित्व बचाये रखना चाहते हैं। तीन राज्यों यूपी, बिहार और महाराष्ट्र में 168 लोकसभा क्षेत्र हैं। यहां भी गठबंधन अब तक सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तैयार नहीं कर पाया है।
नीतीश कुमार ने ही भारत अघाड़ी की पहल की थी। मगर, उनके अपने राज्य में, उनकी अपनी पार्टी में, एक राजनीतिक परिवर्तन चल रहा है। जेडीयू में नीतीश कुमार ने एक बार फिर दांव खेलकर अध्यक्ष पद जीत लिया है। दूसरी ओर, माना जा रहा है कि नीतीश कुमार लालू प्रसाद का साथ छोड़ सकते हैं।
इसके अलावा नीतीश कुमार ने अरुणाचल प्रदेश में अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है। अरुणाचल प्रदेश पश्चिम लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रूही तांगुंग के नाम की घोषणा की गई है। इस कारण अन्य पार्टियों पर विचार नहीं किया जाता।
कहा जा रहा है कि जब संक्रांति के बाद आंदोलन होने की आशंका है तो नीतीश कुमार ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर कांग्रेस की सोची-समझी समय लेने वाली नीति को चेतावनी दे दी है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार पिछले कुछ दिनों से भारत गठबंधन से नाखुश हैं। इसी तरह उनकी शिकायतों के समाधान के लिए बुलाई गई वर्चुअल मीटिंग भी रद्द कर दी गई है।
कांग्रेस ने 275 सीटों पर अकेले लड़ने और गठबंधन सहयोगियों से 80-90 सीटें मांगने का फैसला किया है। यानी कांग्रेस सोच रही है कि गठबंधन से उसे कैसे फायदा होगा, उसके सांसद कैसे बढ़ेंगे। इससे कल सीट बंटवारे की बैठक में सहयोगी दलों की नाराजगी भी बढ़ने की संभावना है। इसके चलते फिलहाल गैस पर लेड नजर आ रहा है।
इसका सीधा फायदा भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को होगा। अगर विपक्ष एक साथ आता तो वोटों की असमानता और सीटों का जो नुकसान होता, वह गठबंधन टूटने के कारण नहीं होता। भाजपा के पास राम मंदिर का ब्रह्मास्त्र होने वाला है। इससे चाहे विरोधी कितना भी भिड़ें, एक मुद्दा सब पर भारी पड़ने की संभावना है।
संभावना है कि राम मंदिर के माहौल में लोकसभा इलेक्शन की घोषणा हो जायेगी। ये काले पत्थर पर लिखी लकीर है कि भाजपा इसका फायदा उठाएगी। ऐसी संभावना है कि दूसरे दलों के नेता भी भाजपा में शामिल होंगे। इससे भाजपा को वहां अपनी ताकत बढ़ाने में भी फायदा होगा जहां वह कमजोर है।
भारत अघाड़ी में 17 लोगों के 17 मुखिया हैं। मगर, एनडीए में भाजपा क्या कहेगी ये दिशा है। क्योंकि भाजपा इस समय अपने चरम पर है, ऐसे में सहयोगी दलों के पास भाजपा की बात मानने और उनके साथ चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। विपरीत बात सामने है। 'हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे' प्रमुख दल होंगे।
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