Up Kiran, Digital Desk: भारत ने गुरुवार को 'अवैध' मध्यस्थता कोर्ट (Court of Arbitration – CoA) द्वारा जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर जारी किए गए एक 'पूरक अवार्ड' को पूरी तरह से खारिज कर दिया। भारत ने इसे 'पाकिस्तान के इशारे पर किया गया ढोंग' और 'अवैध' करार दिया।
भारत ने साफ कहा है कि यह मध्यस्थता कोर्ट 'अवैध' है और इसकी कार्यवाही 'गैरकानूनी' है। भारत, सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty - IWT) के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और उसका मानना है कि ऐसे विवादों का समाधान द्विपक्षीय रूप से या 'तटस्थ विशेषज्ञ' (Neutral Expert – NE) तंत्र के माध्यम से होना चाहिए।
यह विवाद तब शुरू हुआ था जब पाकिस्तान ने 2016 में भारत की किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की थी। भारत ने इसके समानांतर ही 'तटस्थ विशेषज्ञ' कार्यवाही शुरू की थी। विश्व बैंक ने 2016 में इन दोनों प्रक्रियाओं को रोक दिया था, लेकिन 2022 में उसने 'CoA' और 'NE' की दोहरी और विरोधाभासी प्रक्रियाओं को फिर से शुरू कर दिया।
भारत लगातार यह कहता रहा है कि 'तटस्थ विशेषज्ञ' का तंत्र कहीं अधिक सरल, कुशल और तकनीकी मुद्दों के लिए उपयुक्त है, जबकि 'CoA' अनावश्यक रूप से जटिल और विवादों को बढ़ाने वाला है। भारत का यह भी कहना है कि 'CoA' के पास कोई क्षेत्राधिकार नहीं है और वह भारत की भागीदारी के बिना 'एकतरफा' (ex parte) कार्यवाही कर रहा है।
भारत ने सिंधु जल संधि के प्रावधानों के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिबद्धता दोहराई है। जनवरी 2023 में, भारत ने पाकिस्तान को संधि की समीक्षा या उसमें संशोधन के लिए एक नोटिस जारी किया था, जिसका उद्देश्य विवादों को स्थायी रूप से हल करने के लिए बातचीत करना था।
भारत द्वारा इस पूरक अवार्ड को खारिज करना उस मजबूत रुख को दर्शाता है जिसे वह एक अवैध और अनुचित हस्तक्षेप मानता है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मध्यस्थता कोर्ट की इन 'अवैध' कार्यवाही को न तो स्वीकार करेगा और न ही उसमें भाग लेगा।
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