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Up Kiran, Digital Desk: एक ओर पश्चिम एशिया में इजरायल और ईरान की मिसाइलों से भरी जंग छिड़ी है। दूसरी ओर भारत ने संयम, बातचीत और शांति का संदेश दिया है। जब दुनिया के कई मुस्लिम देश इजरायल की आलोचना में लगे हैं, भारत ने कूटनीतिक संतुलन बनाए रखते हुए दोनों देशों को "मित्र" कहा और आग में घी डालने की बजाय पानी डालने का प्रयास किया।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को जारी बयान में दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की और यह भी कहा कि उन्हें "ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे तनाव और बढ़े।" बयान में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि भारत दोनों देशों के साथ अपने पुराने, स्थायी और मैत्रीपूर्ण संबंधों को महत्व देता है।
मोदी-नेतन्याहू की बातचीत और भारत की बढ़ती भूमिका
इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच टेलीफोन पर अहम बातचीत हुई। इस बातचीत के तुरंत बाद भारत में इजरायल के राजदूत रूवेन अजार ने कहा कि "भारत के पास दोनों पक्षों से बात करने की ताकत है, और वह वास्तव में मध्यस्थता की भूमिका निभा सकता है।"
राजदूत अजार ने यह भी कहा कि भारत हमारा सच्चा मित्र है। हम भारत की चिंताओं को ध्यान से सुनते हैं और उन्हें उचित मानते हैं।
भारत की विदेश नीति में हाल के वर्षों में जिस तरह से संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभार हुआ है, इस बयान से वह और स्पष्ट हो गया है। यह वही भारत है जिसने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान इजरायल से मिले खुले समर्थन को भुलाया नहीं, मगर उसी वक्त ईरान जैसे परंपरागत साझेदार से संवाद की डोर भी नहीं तोड़ी।
ईरान के परमाणु खतरे से डरा इजरायल
इस पूरे घटनाक्रम का मूल कारण है इजरायल की आशंका कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने मोदी से फोन पर कहा कि यह हमला “एक अस्तित्वगत खतरे का जवाब” था। अजार के मुताबिक, हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम और उसके परमाणु ठिकानों से उत्पन्न खतरा हमारे लिए वास्तविक है।
इजरायली राजदूत ने दावा किया कि ईरान के शीर्ष नेता अयातुल्ला खामेनेई खुद कई बार इजरायल के "विनाश" की बात कह चुके हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में ईरान का लक्ष्य एक "विस्फोटक मिसाइल आर्सेनल" खड़ा करना है—जिससे इजरायल को पहले ही निपटना होगा।
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