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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक दिलचस्प दौर से गुजर रही है। विभिन्न संकेतक स्पष्ट तौर पर किसी बड़ी कमजोरी या संकट की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं - यानी 'कमजोर संकेत' (weak signals) शायद मौजूद नहीं हैं। लेकिन इसके साथ ही, विकास की जो गति या रफ्तार (momentum) कुछ समय पहले तक दिखाई दे रही थी, उसमें थोड़ी कमी आती दिख रही है।

यह स्थिति पूरी तरह से मंदी (recession) के संकेत नहीं देती, बल्कि यह बताती है कि शायद विकास की अधिकतम तेजी (peak momentum) पार हो चुकी है और अब इसमें थोड़ी स्थिरता या धीमी गति आ रही है। अर्थव्यवस्था अभी भी बढ़ रही है, लेकिन शायद उतनी तेजी से नहीं जितनी पहले बढ़ रही थी या जितनी अपेक्षित थी।

इस 'गति धीमी होने' (waning momentum) के पीछे कई कारक हो सकते हैं। वैश्विक आर्थिक माहौल में नरमी, कुछ क्षेत्रों में मांग का स्थिर होना, मुद्रास्फीति का दबाव जिसने क्रय शक्ति को प्रभावित किया हो, या निवेश में उम्मीद के मुताबिक तेजी न आना - ये कुछ ऐसे कारण हो सकते हैं जो समग्र गति को प्रभावित कर रहे हैं।

यह स्थिति नीति निर्माताओं और कारोबार जगत दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। 'कमजोर संकेतों' की अनुपस्थिति से यह संतोष हो सकता है कि अर्थव्यवस्था किसी बड़े जोखिम में नहीं है, लेकिन 'गति धीमी होने' का मतलब है कि भविष्य में उच्च विकास दर बनाए रखने के लिए अधिक सचेत प्रयासों या नई रणनीतियों की आवश्यकता हो सकती है। यह सिर्फ मात्रात्मक विकास (quantitative growth) का मामला नहीं है, बल्कि विकास की गुणवत्ता और स्थिरता (quality and sustainability) पर भी ध्यान देने का समय हो सकता है।

अर्थव्यवस्था की वर्तमान तस्वीर यह है कि यह मजबूत बुनियाद पर खड़ी है (कोई कमजोर संकेत नहीं), लेकिन इसे अपनी पिछली तेजी को बनाए रखने के लिए या नई ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसकी रफ्तार थोड़ी धीमी हुई है। यह एक ऐसा दौर है जहाँ सतर्कता और सही दिशा में किए गए प्रयास महत्वपूर्ण होंगे।

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