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ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते को लेकर हालात फिर से तनावपूर्ण हो गए हैं। जहां ईरान की ओर से लगातार यह संकेत दिए जा रहे हैं कि वह परमाणु हथियार विकसित करने की दिशा में बढ़ सकता है, वहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर तेहरान को चेतावनी दी है कि अगर ईरान अपनी गतिविधियों से पीछे नहीं हटता, तो अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं रहेगा।

ट्रंप का कड़ा संदेश

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका किसी भी हाल में ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं देगा। उन्होंने ईरान पर यह भी आरोप लगाया कि वह जानबूझकर परमाणु समझौते को टाल रहा है और अपने परमाणु कार्यक्रम को तेज कर रहा है। ओमान में अमेरिका के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ और ईरान के एक वरिष्ठ अधिकारी के बीच मुलाकात के बाद ट्रंप ने कहा:

"ईरान को परमाणु हथियार की कल्पना से भी दूर रहना होगा। अगर उन्होंने ऐसा प्रयास किया, तो हमारे पास सैन्य कार्रवाई का विकल्प खुला है।"

क्या अमेरिका कर सकता है सैन्य हमला?

जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या अमेरिका ईरान की परमाणु सुविधाओं पर सैन्य कार्रवाई कर सकता है, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, "बिलकुल, यह विकल्प भी मौजूद है।" ट्रंप ने जोर देकर कहा कि ईरान को कठोर प्रतिक्रिया से बचने के लिए फौरन कदम उठाने की जरूरत है, क्योंकि वह परमाणु हथियार हासिल करने के बेहद करीब पहुंच चुका है।

हालांकि, ईरान ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि वह परमाणु हथियार बनाने की कोशिश नहीं कर रहा है और उसका कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।

संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

इस बीच, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल मारियानो ग्रॉसी इस सप्ताह के अंत में ईरान की यात्रा पर जाने वाले हैं। उनकी इस यात्रा का मकसद तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर निगरानी और निरीक्षण की पहुंच को मजबूत करना है। यह यात्रा उस समय हो रही है जब दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर है।

पृष्ठभूमि और वार्ताओं का इतिहास

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में 2015 में ईरान के साथ एक बहुपक्षीय परमाणु समझौता हुआ था, जिसे अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी ने समर्थन दिया था। लेकिन 2018 में ट्रंप प्रशासन ने इस समझौते से खुद को अलग कर लिया था। इसके बाद से अमेरिका और ईरान के बीच संबंध लगातार बिगड़ते रहे हैं।

जो बाइडेन के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता हुई थी, लेकिन वह ज्यादा सफल नहीं रही। इस वक्त कोई ठोस कूटनीतिक रास्ता दिखाई नहीं दे रहा।

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