Up Kiran, Digital Desk: भारत के बड़े शहरों में भागदौड़ भरी जिंदगी अब एक नए सवाल पर आकर ठहर गई है क्या हमें हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम करना चाहिए? दिल्ली मुंबई बेंगलुरु और पुणे जैसे महानगरों में ज्यादातर कॉर्पोरेट दफ्तर अभी भी पाँच दिन काम और दो दिन आराम की पुरानी व्यवस्था पर चल रहे हैं। पर अब कर्मचारियों के बीच काम के बढ़ते बोझ लंबी शिफ्ट और निजी जीवन के साथ संतुलन बनाने की चुनौती के कारण 4-Day वर्क वीक यानी चार दिन काम और तीन दिन की छुट्टी की मांग जोर पकड़ रही है।
कर्मचारी मानते हैं कि अगर उन्हें हफ्ते में एक अतिरिक्त दिन की छुट्टी मिले तो उनकी उत्पादकता यानी प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी साथ ही उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत भी पहले से बेहतर हो सकती है। यह सिर्फ एक इच्छा नहीं है यह दुनिया भर में हो रहे बदलावों की गूँज है।
दुनिया में प्रयोग भारत में क्यों नहीं?
जापान स्पेन और जर्मनी जैसे देशों की कई कंपनियां इस मॉडल को एक प्रयोग के तौर पर अपना रही हैं। इन पायलट प्रोजेक्ट्स के नतीजे काफी उत्साहजनक रहे हैं। इन सफल प्रयोगों ने भारत में भी यह बहस छेड़ दी है कि क्या हमारे देश में भी यह व्यवस्था लागू हो सकती है। खासकर पिछले महीने श्रम कानूनों में हुए बदलावों के बाद यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो गया है क्या नए नियम इस चार दिवसीय कार्य सप्ताह की अनुमति देते हैं और क्या भारतीय कंपनियां इसे खुशी खुशी अपनाएँगी?
श्रम मंत्रालय ने क्या कहा?
इस पूरे मामले पर श्रम और रोजगार मंत्रालय ने पिछले दिनों अपनी स्थिति साफ की। 12 दिसंबर को मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट साझा किया जिसमें 4-Day वर्क वीक की संभावनाओं पर स्पष्टीकरण दिया गया। मंत्रालय ने साफ कहा कि नए श्रम कानूनों के तहत किसी भी कर्मचारी से एक सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता।
इसका सीधा मतलब यह है कि अगर कोई कंपनी चार दिन काम का मॉडल अपनाना चाहती है तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि कर्मचारियों को इन चार दिनों में ही 48 घंटे का काम पूरा करना पड़े। यानी रोजाना की शिफ्ट लंबी हो सकती है। यह 4-Day वर्क वीक की राह में एक दिलचस्प मोड़ है क्योंकि यह छुट्टी तो देता है पर साथ ही काम के घंटों में लचीलेपन की भी मांग करता है।

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