
Up Kiran, Digital Desk: अंतरिक्ष की दुनिया से एक थोड़ी चिंता और थोड़ी हैरानी वाली खबर आ रही है। सोवियत संघ के ज़माने का, करीब 53 साल पुराना एक अंतरिक्ष यान का हिस्सा (लैंडिंग कैप्सूल), जो कभी शुक्र ग्रह के लिए भेजा गया था, अब अनियंत्रित होकर वापस धरती के वायुमंडल में गिरने वाला है। इस खबर ने अंतरिक्ष मलबे पर नज़र रखने वाले वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है।
क्या है पूरा मामला?
सोवियत संघ ने 1972 में शुक्र ग्रह के लिए 'कोस्मोस 482' (Kosmos 482) नाम का एक मिशन लॉन्च किया था। लेकिन, लॉन्चिंग के बाद रॉकेट में आई खराबी के कारण यह यान कभी पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल ही नहीं पाया और शुक्र तक पहुंचने में नाकाम रहा। मिशन का बड़ा हिस्सा तो एक दशक के अंदर ही वापस गिरकर नष्ट हो गया था, लेकिन उसका लैंडिंग कैप्सूल, जो शुक्र के घने वायुमंडल में उतरने के लिए डिज़ाइन किया गया था, पृथ्वी की ही एक बेहद लंबी, अंडाकार कक्षा में फंस गया।
53 साल से लगा रहा चक्कर, अब गिरने की बारी
विशेषज्ञों का मानना है कि यह लैंडिंग कैप्सूल - जो लगभग 1 मीटर (3 फीट) व्यास की एक गोल वस्तु है और जिसका वज़न करीब 500 किलोग्राम (आधा टन) है - पिछले 53 सालों से पृथ्वी के चक्कर लगा रहा है। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई कम होती जा रही है और अब यह पृथ्वी के वायुमंडल में दोबारा प्रवेश करने (री-एंट्री) के करीब है।
कब और कहां गिरेगा? कितना है खतरा?
डच वैज्ञानिक और अंतरिक्ष मलबे पर नज़र रखने वाले मार्को लैंगब्रोक का अनुमान है कि यह कैप्सूल 10 मई के आसपास पृथ्वी के वायुमंडल में दोबारा प्रवेश कर सकता है। हालांकि, अभी यह कहना बहुत मुश्किल है कि यह धरती पर गिरेगा तो कहाँ गिरेगा, और वायुमंडल में घुसने के दौरान जलने के बाद इसका कितना हिस्सा बचेगा।
लैंगब्रोक का अनुमान है कि अगर यह कैप्सूल बिना टूटे धरती तक पहुंचता है, तो यह करीब 242 किलोमीटर प्रति घंटे (150 मील/घंटा) की रफ्तार से ज़मीन से टकरा सकता है।
लेकिन, क्या हमें बहुत चिंता करनी चाहिए? लैंगब्रोक कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि इसमें कोई खतरा नहीं है, लेकिन हमें बहुत ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए।" उनका मानना है कि यह वस्तु अपेक्षाकृत छोटी है और इसका खतरा किसी सामान्य उल्कापिंड के गिरने के बराबर ही है, जैसी घटनाएं हर साल कई बार होती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आपके जीवनकाल में बिजली गिरने का खतरा इससे कहीं ज़्यादा होता है। किसी व्यक्ति या चीज़ से इसके टकराने की संभावना बहुत ही कम है, "लेकिन इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता।"
क्या यह बच पाएगा?
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह कैप्सूल शुक्र के बेहद गर्म और घने कार्बन डाइऑक्साइड वाले वायुमंडल को झेलने के लिए बनाया गया था, इसलिए बहुत संभव है कि यह पृथ्वी के वायुमंडल में री-एंट्री के दौरान भी काफी हद तक बचा रह जाए। इसमें लगी हीट शील्ड (ऊष्मा कवच) इसे जलने से बचा सकती है। हालांकि, इतने सालों बाद पैराशूट सिस्टम के काम करने की कोई उम्मीद नहीं है, और हीट शील्ड भी कमजोर पड़ सकती है।
हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के जोनाथन मैकडॉवेल कहते हैं कि अगर हीट शील्ड विफल हो जाती है, तो यह बेहतर होगा क्योंकि तब कैप्सूल वायुमंडल में ही जलकर नष्ट हो जाएगा। लेकिन अगर हीट शील्ड काम करती है, तो "यह बरकरार रहेगा और आपके पास आसमान से गिरने वाली आधा टन की धातु की वस्तु होगी"।
संभावित गिरने का क्षेत्र
अनुमान है कि यह मलबा 51.7 डिग्री उत्तरी और दक्षिणी अक्षांश के बीच कहीं भी गिर सकता है। यह क्षेत्र कनाडा के अल्बर्टा से लेकर दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे तक फैला है। लैंगब्रोक के अनुसार, क्योंकि पृथ्वी का ज्यादातर हिस्सा पानी है, इसलिए “इस बात की अच्छी संभावना है कि यह किसी महासागर में गिरकर समा जाएगा।
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