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Up Kiran, Digital Desk: वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों में चल रही उठापटक के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। जापान ने रूस के साथ शांति वार्ता फिर से शुरू करने की अपनी इच्छा दोहराई है, जिसका मुख्य उद्देश्य दशकों पुराने क्षेत्रीय विवाद को सुलझाना और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के शांति समझौते पर हस्ताक्षर करना है। यह पहल ऐसे समय में आई है जब यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हैं।

जापान की विदेश मंत्री योको कामिकावा ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस बात पर जोर दिया कि जापान की नीति हमेशा से यही रही है कि वह विवादित उत्तरी क्षेत्रों (जिसे रूस कुरील द्वीप समूह कहता है) के मुद्दे को हल करे और रूस के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर करे। उन्होंने कहा कि यह जापान की "स्थिर नीति" है और वे इसे आगे बढ़ाना चाहते हैं।

दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से जापान और रूस ने कभी औपचारिक रूप से शांति संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसका मुख्य कारण उत्तरी प्रशांत महासागर में चार द्वीपों (जापानी नाम: उत्तरी क्षेत्र; रूसी नाम: कुरील द्वीप समूह) पर दोनों देशों का दावा है।

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद स्थिति और जटिल हो गई थी। जापान ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, जिसके बाद रूस ने जापान के इन कदमों को "अमित्रतापूर्ण" बताया और शांति वार्ता से पीछे हट गया था। रूस का कहना है कि ये द्वीप उसके क्षेत्र का हिस्सा हैं और जापान के प्रतिबंधों के कारण बातचीत जारी रखना असंभव है।

जापान की नई पहल दिखाती है कि वह संबंधों को सामान्य करने और इस ऐतिहासिक विवाद को सुलझाने के लिए उत्सुक है। यह देखना दिलचस्प होगा कि रूस इस पेशकश पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या दोनों देश दशकों पुराने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक बार फिर बातचीत की मेज पर आ पाते हैं। यह कूटनीतिक कदम वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है।

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