
Up Kiran, Digital Desk: दिवाली का मतलब क्या होता है? पटाखे, मिठाइयां और नए कपड़े? शायद हाँ, लेकिन इन सबसे बढ़कर दिवाली का मतलब होता है तैयारी, इंतज़ार और अपनों का घर लौटना। वो धूल भरे पुराने डिब्बों का निकलना, एक-एक झालर को सुलझाना, माँ के हाथ से बनती मिठाइयों की खुशबू और रंगोली के रंगों का बिखरना... दिवाली इन छोटी-छोटी तैयारियों से ही तो बनती है।
इसी खूबसूरत एहसास को वीवो (vivo) ने अपने नए दिवाली कैंपेन JoyOfHomecoming में बहुत ही दिल छू लेने वाले अंदाज़ में दिखाया है। यह वीडियो किसी बड़ी चमक-दमक वाली कहानी के बारे में नहीं है, बल्कि यह उन शांत, प्यारे पलों के बारे में है जो त्यौहार के इंतज़ार को और भी खास बना देते हैं।
क्या है इस वीडियो में जो दिल को छू जाता है?
कहानी एक पिता की है, जो घर पर अकेले ही दिवाली की तैयारियों में जुटे हैं। घर बड़ा है, लेकिन सूना है। वह अकेले ही सफाई कर रहे हैं, लाइटें लगा रहे हैं, और हर कोने को अपनी बेटी के आने के लिए सजा रहे हैं। उनकी हर हरकत में एक उम्मीद और एक इंतज़ार छिपा है।
तभी, सफाई करते हुए उन्हें एक पुराना संदूक मिलता है जिसमें उनकी बेटी का लिखा एक बचपन का खत है। उस खत में नन्हीं सी बेटी ने अपने पापा से वादा किया था कि "अगली बार मैं आपकी झालर टाँगने में मदद करूँगी।" उस एक खत को पढ़ते हुए पिता की आँखें भर आती हैं और चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान फैल जाती है। यह सीन हमें याद दिलाता है कि त्यौहार सिर्फ एक दिन का जश्न नहीं, बल्कि उन वादों, यादों और रिश्तों की डोर है जो हमें एक-दूसरे से बांधे रखती है।
सिर्फ एक विज्ञापन नहीं, एक एहसास
वीवो ने पिछले कई सालों में लोगों को दूरियों को मिटाने और एक-दूसरे से जुड़े रहने में मदद की है, ताकि वे ऐसे ही खूबसूरत पलों को कैद कर सकें। यह कैंपेन भी यही कहता है कि दिवाली की असली चमक पटाखों में नहीं, बल्कि अपनों के घर आने की खुशी में होती है। यह उस एहसास के बारे में है जब एक घर, घर जैसा लगने लगता है।
यह फिल्म हमें सिखाती है कि खुशियाँ अक्सर बड़ी चीजों में नहीं, बल्कि छोटी-छोटी तैयारियों, साथ बिताए पलों और उस इंतज़ार में छिपी होती हैं जो किसी अपने के घर लौटने पर खत्म होता है।