
Up Kiran, Digital Desk: तमिलनाडु के प्राचीन शहर काँचीपुरम की रसोई से एक बेहद खास खबर आ रही है। यहां की प्रसिद्ध और पवित्र 'कोइल इडली' को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग का दर्जा मिलने की दहलीज पर है, जिससे इसकी सदियों पुरानी विरासत और अनोखी पहचान को आधिकारिक मान्यता मिल सकेगी।
जीआई टैग किसी उत्पाद की उस अनूठी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या विशेषताओं को प्रमाणित करता है जो उसके भौगोलिक मूल के कारण होती हैं। यह न केवल उस उत्पाद की नकल रोकने में मदद करता है, बल्कि स्थानीय कारीगरों और समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त भी करता है।
कोइल इडली, जो श्री वरदराजा पेरुमल मंदिर में एक हजार साल से भी अधिक समय से भगवान को 'प्रसादम' के रूप में चढ़ाई जाती है, सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर है। इसे बनाने की विधि बेहद खास है: चावल, उड़द दाल, काली मिर्च, जीरा, अदरक, करी पत्ता, हींग और नमक का सही मिश्रण।
इसे विशेष रूप रूप से 'मंदारई' के पत्तों (जिसे 'कंचनार' पत्ता भी कहते हैं) में स्टीम किया जाता है, और तैयार होने के बाद शुद्ध घी में डुबोया जाता है। यह अनूठी प्रक्रिया इसे एक नरम, स्पंजी बनावट और एक विशेष सुगंध और स्वाद प्रदान करती है, जो इसे सामान्य इडली से अलग बनाती है।
चेन्नई स्थित ज्योग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री फिलहाल मंदिर प्रशासन द्वारा दिए गए इस आवेदन की समीक्षा कर रही है। यदि इसे मंजूरी मिल जाती है, तो यह कोइल इडली को उसी तरह की कानूनी सुरक्षा और विश्वव्यापी पहचान दिलाएगा, जैसी तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू को मिली हुई है।
यह मान्यता न केवल इस पवित्र व्यंजन की विरासत को संरक्षित करेगी, बल्कि काँचीपुरम के स्थानीय समुदायों के लिए आर्थिक लाभ भी लाएगी। यह पर्यटन को बढ़ावा देगा और इस अद्वितीय धार्मिक व पाक परंपरा में लोगों की रुचि बढ़ाएगा। कोइल इडली का जीआई टैग की ओर बढ़ना, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और पाक विरासत को सम्मान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
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