Up Kiran, Digital Desk: कंद षष्ठी के 6 दिनों के उत्सव के बाद भगवान मुरुगन का दिव्य विवाह, जिसे 'मुरुगन तिरुकल्याणम' कहते हैं, बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। जब भगवान मुरुगन, राक्षस सूरपद्मन का वध करते हैं, तो उसके अगले ही दिन उनका विवाह संपन्न कराया जाता है।
कब है मुरुगन तिरुकल्याणम?
साल 2025 में कंद षष्ठी का व्रत 22 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इसके 6 दिनों बाद, 27 अक्टूबर को सूरसंहार (राक्षस का वध) किया जाएगा। इसके ठीक अगले दिन, यानी 28 अक्टूबर 2025 (मंगलवार) को ज्यादातर मंदिरों में भगवान मुरुगन का विवाह समारोह आयोजित होगा। हालांकि, तिरुचेंदुर जैसे कुछ प्रमुख मंदिरों में यह तारीख 14 नवंबर भी बताई जा रही है, इसलिए अपने स्थानीय मंदिर से सही तारीख की पुष्टि ज़रूर कर लें।
कैसे होती है पूजा और क्या हैं रस्में?
इस पर्व के दौरान भक्त 6 दिनों का कठोर व्रत रखते हैं। सूरसंहार के दिन मंदिरों में भगवान मुरुगन द्वारा राक्षस वध की लीला का मंचन होता है, जिसे देखने के लिए हज़ारों की भीड़ उमड़ती है।
विवाह की रस्में: अगले दिन, भगवान मुरुगन और उनकी पत्नियों को दूल्हा-दुल्हन की तरह सजाया जाता है। मूर्तियों का अभिषेक होता है, नए वस्त्र और गहने पहनाए जाते हैं और फिर पूरे विधि-विधान से विवाह की रस्में निभाई जाती हैं।
निकलती है भव्य यात्रा: विवाह के बाद भगवान की भव्य यात्रा निकाली जाती है, जिसमें भक्त भजन-कीर्तन करते हुए शामिल होते हैं।
व्रत का पारण: विवाह संपन्न होने के बाद भक्त अपना व्रत तोड़ते हैं और मंदिर में प्रसाद बांटकर खुशियाँ मनाते हैं।
तमिलनाडु के तिरुचेंदुर और तिरुप्परनकुंद्रम जैसे बड़े मंदिरों में इस उत्सव की रौनक देखते ही बनती है। यह त्योहार सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि भक्ति, अनुशासन और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है।
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