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सन् 1996 से लेकर अभी तक पीलीभीत सीट पर मेनका गांधी से लेकर वरुण गांधी तक का ही दबदबा रहा। वहां की जनता ने इन्हें ही मौका दिया। इन पर ही भरोसा किया। मगर अब समीकरण बदल चुका है और बदले हुए समीकरण में पीलीभीत से बीजेपी ने वरुण गांधी का टिकट काट दिया है।

यूपी की तीन हाईप्रोफाइल सीट रायबरेली, अमेठी और पीलीभीत। अमेठी राहुल गांधी के हाथ से बहुत पहले चला गया। उसके बाद पीलीभीत अब वरुण गांधी के हाथ से जा चुका है। ताजी रिपोर्ट के मुताबिक पूरी पीछे की कहानी बताएंगे कि वरुण गांधी के कौन कौन से स्टैंड पर बीजेपी को बहुत नाराजगी हुई। बीजेपी का कदम नागवार गुजरा और उसके बाद ये नाराजगी का असर ये हुआ कि सीधे मेनका गांधी को तो टिकट कन्फर्म कर दिया गया मगर उनके बेटे वरुण गांधी का पत्ता साफ हो गया। यानी फिलहाल वो ऐसी पशोपेश की स्थिति में है कि क्या वो पार्टी बदलें।

विधानसभा चुनाव दो हज़ार 17 में उत्तर प्रदेश में और उस दौरान एक अंदरखाने से पोस्टर वॉर की शुरुआत हुई। पोस्टर एंगल किस तरीके से सामने आया कि वरुण गांधी ने उत्तर प्रदेश के लिहाज से अपने आप को उस तरीके से अपने लिए माहौल बनाना शुरू किया, प्रचारित करना शुरू किया जैसे कि वो अगला सीएम का चेहरा उत्तर प्रदेश में हो सकते हैं। ये कहीं ना कहीं पार्टी लाइन से बिल्कुल अलग बातें लगी और ये बीजेपी शीर्ष नेतृत्व को ये बातें पसंद नहीं आई। उसके बाद वहां सरकार का गठन हो गया। योगी सीएम बन चुके थे। फिर उसके बाद आता है कोरोना का माहौल।

दो हज़ार 19 में सरकार गठन के साथ ही वहां पर एक के बाद एक पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने बयानबाजी करनी शुरू की। भारत सरकार की जो भी योजनाएं थी, केंद्र सरकार की जो भी योजनाएं थीं, उनमें एक एक करके उन्होंने खामियां गिनानी शुरू की और ये सब कुछ सार्वजनिक मंच पर हो रहा था। ऐसा नहीं कि पार्टी लाइन के अंदर पार्टी के भीतर ये बातें रख रहे थे, बल्कि वो जहां भी सार्वजनिक मंच पर जाते वहां पर वो बयानबाजी करने से बाज नहीं आते थे।

कृषि कानून मामले में भी वरुण गांधी ने अपनी ही सरकार की खूब आलोचना की और तब से इस बात पर खूब चर्चा होने लगी थी कि वरुण गांधी पीलीभीत से चेहरा नहीं होंगे और इस चर्चा पर मुहर लग चुकी है। वरुण गांधी को वाकई पार्टी ने मौका नहीं दिया। उनका टिकट कट चुका है। 

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