
Up Kiran, Digital Desk: पर्यावरण और हमारे भविष्य से जुड़ी एक बहुत बड़ी और अच्छी खबर आ रही है। भारत सरकार जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से लड़ने के लिए एक ऐसा क्रांतिकारी कदम उठाने जा रही है, जिसके बारे में आपने शायद पहले नहीं सुना होगा। देश में जल्द ही एक "कार्बन बाजार" (Carbon Market) शुरू होने वाला है।
इसकी तैयारी के लिए सरकार ने अपनी एक महत्वपूर्ण संस्था को और भी बड़ा और शक्तिशाली बना दिया है। चलिए, इसे बिल्कुल सरल भाषा में समझते हैं कि यह है क्या और इसका हम पर क्या असर होगा।
आखिर यह 'कार्बन बाजार' है क्या?
इसे एक उदाहरण से समझिए।
मान लीजिए, सरकार ने दो फैक्ट्रियों (फैक्ट्री A और फैक्ट्री B) को एक साल में 100 यूनिट प्रदूषण करने की इजाजत दी। यह उनका "प्रदूषण का कोटा" है।
फैक्ट्री A ने अच्छी और नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया और सिर्फ 80 यूनिट प्रदूषण किया। यानी, उसने अपने कोटे से 20 यूनिट प्रदूषण कम किया।
फैक्ट्री B पुरानी मशीनें इस्तेमाल कर रही थी और उसने 120 यूनिट प्रदूषण कर दिया, जो उसके कोटे से 20 यूनिट ज्यादा है।
अब यहीं से 'कार्बन बाजार' का खेल शुरू होता है।
फैक्ट्री A को कम प्रदूषण करने के लिए इनाम के तौर पर "कार्बन क्रेडिट" मिलेंगे (जो उसने 20 यूनिट बचाए हैं)। वहीं, फैक्ट्री B को ज्यादा प्रदूषण करने की वजह से जुर्माना भरना पड़ेगा। जुर्माने से बचने के लिए, फैक्ट्री B को फैक्ट्री A से उसके बचाए हुए 20 यूनिट के "कार्बन क्रेडिट" खरीदने होंगे।
इस खरीद-बिक्री से एक बाजार बन जाएगा। इससे फैक्ट्री A को साफ-सुथरी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने के लिए पैसे मिलेंगे, और फैक्ट्री B पर ज्यादा प्रदूषण करने के लिए आर्थिक बोझ पड़ेगा। नतीजा? हर कंपनी कम से कम प्रदूषण करने की कोशिश करेगी।
तो अब क्या नया हो रहा है: इस पूरे 'कार्बन बाजार' को चलाने और इस पर नजर रखने के लिए एक रेफरी या मैनेजर की जरूरत होगी। यह जिम्मेदारी सरकार की एक पुरानी और भरोसेमंद संस्था "ऊर्जा दक्षता ब्यूरो" (Bureau of Energy Efficiency - BEE) को दी गई है।
क्योंकि यह एक बहुत बड़ी और नई जिम्मेदारी है, इसलिए सरकार ने BEE की टीम को और भी बड़ा बना दिया है। अब इस टीम में स्टील, हवाई जहाज (Civil Aviation), ग्रीन हाइड्रोजन और फाइनेंस जैसे क्षेत्रों के बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स को भी शामिल किया जा रहा है। ताकि यह नया बाजार बिना किसी गड़बड़ी के सुचारू रूप से चल सके।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी:भारत ने दुनिया से वादा किया है कि वह 2070 तक "नेट जीरो" का लक्ष्य हासिल करेगा। इसका मतलब है कि हम उतना ही प्रदूषण करेंगे, जितना हमारा पर्यावरण सोख सकता है। 'कार्बन बाजार' इसी बड़े लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और व्यावहारिक कदम है।
--Advertisement--