
Up Kiran, Digital Desk: पश्चिम बंगाल से शिक्षा क्षेत्र को लेकर एक बेहद चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। एक नए विश्लेषण से पता चला है कि राज्य में ऐसे स्कूलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जहाँ एक भी छात्र का नामांकन (एडमिशन) नहीं हुआ है, यानी इन स्कूलों में 'ज़ीरो एनरोलमेंट' है। और इस सूची में राज्य की राजधानी कोलकाता सबसे आगे है, जहाँ ऐसे स्कूलों की 34% से भी ज़्यादा हिस्सेदारी है।
यह आंकड़ा शिक्षा के अधिकार (RTE) और सभी बच्चों तक शिक्षा पहुँचाने के सरकारी प्रयासों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। 'ज़ीरो एनरोलमेंट स्कूल' का मतलब है कि ये स्कूल भौतिक रूप से मौजूद हैं, शायद शिक्षक भी नियुक्त हैं, लेकिन उनमें कोई बच्चा पढ़ने नहीं आ रहा है।
कोलकाता क्यों है सबसे ऊपर?
यह हैरान करने वाला है कि एक मेट्रोपॉलिटन शहर, जहाँ शिक्षा के अवसर ज़्यादा होने चाहिए, वहाँ ऐसे स्कूलों की इतनी बड़ी संख्या क्यों है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
आबादी का पलायन: कुछ क्षेत्रों से परिवारों का पलायन, खासकर निम्न-आय वर्ग के परिवारों का ग्रामीण या अन्य शहरी क्षेत्रों में जाना।
निजी स्कूलों की ओर रुझान: माता-पिता का सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों की ओर बढ़ना, भले ही वे महंगे हों।
गुणवत्ता का अभाव: सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता, सुविधाओं की कमी या शिक्षकों की अनुपस्थिति को लेकर धारणाएं।
स्थानांतरण या बंद होने की प्रक्रिया: कुछ स्कूल ऐसे हो सकते हैं जो बंद होने की प्रक्रिया में हों या स्थानांतरित किए जा रहे हों।
राज्यव्यापी समस्या और इसके निहितार्थ:
सिर्फ कोलकाता ही नहीं, यह समस्या पूरे पश्चिम बंगाल में फैली हुई है। ऐसे स्कूलों का अस्तित्व संसाधनों की बर्बादी है - इमारतों का रखरखाव, शिक्षकों का वेतन और अन्य बुनियादी ढाँचा बेकार चला जाता है। यह उन बच्चों के लिए भी एक चूक का अवसर है जिन्हें शिक्षा मिलनी चाहिए थी।
शिक्षा विभाग पर दबाव बढ़ गया है कि वह इन 'ज़ीरो एनरोलमेंट' वाले स्कूलों की पहचान करे, उनके कारणों का पता लगाए और सुधारात्मक उपाय करे। इसमें स्कूलों का विलय, शिक्षकों का पुनर्रोजगार, या इन क्षेत्रों में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
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