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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश (एक्टिंग चीफ जस्टिस) ने समाज में लैंगिक संवेदनशीलता (जेंडर सेंसिटाइजेशन) की कमी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि एक समाज के तौर पर हम लैंगिक समानता और सम्मान की दिशा में अभी भी कहीं न कहीं पीछे हैं। यह टिप्पणी हैदराबाद में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम के दौरान की गई, जो लैंगिक न्याय और सामाजिक चेतना पर केंद्रित था।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि लैंगिक संवेदनशीलता का मतलब केवल महिलाओं के प्रति सम्मान दिखाना नहीं है, बल्कि यह सभी लिंगों के प्रति पूर्वाग्रहों (biases) और रूढ़ियों (stereotypes) को तोड़ना है। उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली में भी लैंगिक संवेदनशीलता की उतनी ही आवश्यकता है, ताकि सभी व्यक्तियों को निष्पक्ष और समान व्यवहार मिल सके, चाहे उनकी लैंगिक पहचान कुछ भी हो।

उनकी टिप्पणी बताती है कि कानूनी और सामाजिक ढांचे के बावजूद, जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि लैंगिक संवेदनशीलता केवल कानून या अदालतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे घरों, स्कूलों, कार्यस्थलों और पूरे समुदाय में गहरे तक समाहित होनी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश ने शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि बच्चों को बचपन से ही लैंगिक समानता और एक-दूसरे के सम्मान के बारे में सिखाना चाहिए। स्कूलों और कॉलेजों में इस विषय पर नियमित चर्चा और कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए ताकि युवा पीढ़ी अधिक संवेदनशील और समावेशी बन सके।

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