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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट सुनाई देने लगी है और राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के 'सामाजिक न्याय' के पुराने हथियार को एक बार फिर धार दी जा रही है जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) विकास के मुद्दे पर जोर दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लालू का सामाजिक न्याय का घोड़ा 2025 में दौड़ेगा या एनडीए का विकास रथ आगे निकल जाएगा?
तेजस्वी का 'लालू फॉर्मूला': सामाजिक न्याय की वापसी
राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं को लालू प्रसाद के विचारों को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाने का आह्वान किया है। उन्होंने 'सामाजिक न्याय' को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की है। इसके तहत राजद बिहार के सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में सम्मेलन आयोजित करेगा। इन सम्मेलनों का उद्देश्य दलितों पीड़ितों और पिछड़ों को एक बार फिर 1990 के दशक की तरह एकजुट करना है।
राजद के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर 'सामाजिक न्याय' का अलख जगाएंगे। तेजस्वी यादव का प्लान है कि 'सामाजिक न्याय' के मंच से रोजगार न्याय और भाईचारे के मुद्दों पर जनता के बीच जाया जाए। उनका मानना है कि एनडीए सोशल मीडिया पर अफवाहों का साम्राज्य फैला रहा है जिसका मुकाबला संगठन विचार और सामाजिक न्याय के आधार पर किया जा सकता है।
एनडीए का 'विकास रथ': पुराने मुद्दों से दूरी
वहीं एनडीए ने पुराने मुद्दों जैसे 'जंगल राज' और 'परिवारवाद' से दूरी बनाते हुए विकास के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि तेजस्वी यादव एनडीए सरकार के 'सुशासन' पर सवाल उठाते हुए क्राइम बुलेटिन जारी कर रहे हैं और परिवारवाद के मुद्दे पर एनडीए नेताओं के उदाहरण दे रहे हैं।
रोजगार और पलायन: चुनावी मुद्दा
तेजस्वी यादव ने रोजगार और पलायन को भी चुनावी मुद्दा बनाया है। उन्होंने शिक्षक बहाली का श्रेय लेते हुए एनडीए पर निशाना साधा है। उनका दावा है कि महागठबंधन सरकार ने दो लाख शिक्षकों को नौकरी दी है जबकि एनडीए नेता इसे असंभव बताते थे।
बदलता चुनावी परिदृश्य
तेजस्वी यादव के बदले हुए चुनावी बोल से यह स्पष्ट है कि उन्होंने 'ए टू जेड' (AZ) का दामन छोड़ दिया है और 'सामाजिक न्याय' के पुराने फॉर्मूले पर भरोसा कर रहे हैं। वहीं एनडीए विकास के मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
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