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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में चुनावी माहौल धीरे-धीरे गरमाने लगा है और इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक ऐसा फैसला लिया है जो राज्य के लाखों गरीब और भूमिहीन परिवारों के जीवन में बदलाव ला सकता है। यह कदम केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ी पहल के रूप में देखा जा रहा है।
राज्य सरकार ने यह ऐलान किया है कि वह भूमि से जुड़े पुराने विवादों और रिकॉर्ड की गड़बड़ियों को दूर करने के लिए एक विशेष अभियान चलाने जा रही है। 16 अगस्त से 20 सितंबर तक चलने वाले इस राजस्व महाअभियान के जरिए न सिर्फ जमाबंदी रिकॉर्ड को सुधारा जाएगा, बल्कि उत्तराधिकार, नामांतरण और बंटवारे से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान किया जाएगा।
1.3 करोड़ परिवारों को ज़मीन मिलने की आस
इस अभियान का असली असर उन 1.3 करोड़ भूमिहीन और बटाईदार किसानों पर पड़ेगा, जो अब तक केवल सरकारी कागजों में ‘ग़ैर-मालिक’ माने जाते थे। नीतीश सरकार के इस निर्णय से उन्हें ज़मीन के कागज़ी हक मिलने की संभावना बढ़ गई है। इससे न केवल उनकी आजीविका में स्थायित्व आएगा, बल्कि आर्थिक रूप से भी वे सशक्त हो सकेंगे।
‘बसेरा-II’ से फिर जागी उम्मीद
2014 में शुरू किया गया ‘बसेरा योजना’ का पहला चरण कागज़ों तक ही सीमित रह गया था। अब सरकार ने उसी योजना को नए रूप में ‘बसेरा-II’ के तहत पुनर्जीवित किया है। इस बार प्रशासन और तकनीकी संसाधनों को ज़मीनी स्तर पर उतारने की ठोस योजना बनी है। जिन परिवारों का सर्वे पहले ही हो चुका है, उन्हें अब वास्तविक ज़मीन आवंटन की प्रक्रिया से जोड़ा जा रहा है।
डिजिटल रजिस्ट्रेशन से पारदर्शिता की कोशिश
नई व्यवस्था में जमाबंदी से जुड़ी सूचनाएं डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड की जाएंगी, जिससे ग्रामीण स्तर पर भी पारदर्शिता बनी रहे। इसके अलावा, आम लोगों से शिकायतें लेकर उनका निपटारा ब्लॉक स्तर पर किया जाएगा। इसके लिए अधिकारियों को मोबाइल ऐप के माध्यम से डेटा सत्यापित कर मुख्यालय को रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
राजनीतिक असर और सामाजिक सशक्तिकरण
यह पहल केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से हाशिए पर खड़े लोगों के लिए एक बड़ा सशक्तिकरण टूल बन सकती है। चुनाव से ठीक पहले यह कदम नीतीश सरकार को ग्रामीण वोट बैंक में मज़बूती दिला सकता है, खासकर उन समुदायों में जहां अब तक राजनीतिक उपेक्षा का भाव था।
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