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Up Kiran, Digital Desk: असम में इस साल दुर्गा पूजा की रौनक तो है, लेकिन उस जश्न में एक खामोशी भी है. पूरा राज्य अपने चहेते और दिग्गज गायक ज़ुबीन गार्ग के जाने का मातम मना रहा है, और इसका असर असम के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा पर भी साफ दिख रहा है. ज़ुबीन के अचानक चले जाने से पूजा का उत्साह एक गहरे दुख में बदल गया है.

इस साल भव्य पंडालों और चकाचौंध वाली सजावट की जगह सादगी ने ले ली है. कई पूजा कमेटियों ने अपने इस सांस्कृतिक हीरो को श्रद्धांजलि देने के लिए समारोहों को बहुत ही साधारण रखने का फैसला किया है.

हर पंडाल, हर दिल में ज़ुबीन दा की याद

गुवाहाटी के लतासिल में सर्बजनिन दुर्गा पूजा कमेटी ने पंडाल में ज़ुबीन गार्ग की एक बड़ी सी तस्वीर लगाई है, जहाँ माँ दुर्गा के साथ-साथ भक्त अपने प्रिय गायक को भी याद कर रहे हैं. आयोजकों का कहना है कि उन्होंने जानबूझकर किसी भी तरह के दिखावे या शोर-शराबे से बचते हुए, सिर्फ पारंपरिक रीति-रिवाजों पर ध्यान दिया है.

कुछ ऐसी ही तस्वीर सिपाझार में भी देखने को मिली, जहाँ गणेश कुंवारी सर्बजनिन दुर्गा पूजा कमेटी ने महा अष्टमी की शुरुआत ही ज़ुबीन को फूलों से श्रद्धांजलि देकर की. लोगों का कहना है कि ज़ुबीन का असम की संस्कृति से इतना गहरा नाता था कि उनके बिना कोई भी जश्न अधूरा है.

सबसे भावुक माहौल कामपुर में दिखा. यहाँ एक खास पंडाल बनाया गया, जिसमें ज़ुबीन की चमकती हुई तस्वीरें लगाई गई थीं. लोग सिर्फ माँ दुर्गा का आशीर्वाद लेने ही नहीं, बल्कि अपने प्यारे "ज़ुबीन दा" को सम्मान देने के लिए भी बड़ी संख्या में पहुँचे. पिछले सालों के विपरीत, इस बार यहाँ न तो कोई रंग-बिरंगी लाइटें थीं और न ही कोई म्यूजिकल प्रोग्राम. पंडाल में सिर्फ धूप की महक, शंख की ध्वनि और पंडितों के मंत्र गूंज रहे थे.

पूरे असम में इस साल की पूजा, भक्ति और यादों का एक संगम बन गई है. आयोजकों ने उस इंसान को सम्मान देने के अपने-अपने तरीके ढूंढ लिए हैं, जिसे अक्सर असम के लोगों की "आवाज और धड़कन" कहा जाता था.

गुवाहाटी के एक आयोजक ने बड़े ही भावुक मन से कहा, “इस साल हमारी प्रार्थना सिर्फ माँ दुर्गा के लिए नहीं, बल्कि ज़ुबीन दा की आत्मा की शांति के लिए भी है. ढोल की हर थाप और पंडाल के हर कोने में उनकी कमी महसूस हो रही है.”