
Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर जातिगत समीकरणों ने जोर पकड़ लिया है। पिछले हफ्ते लखनऊ के होटल क्लार्क्स अवध में 'कुटुंब परिवार' के बैनर तले लगभग 40 ठाकुर विधायकों का जमावड़ा, राज्य की राजनीतिक हलचल में एक नई ऊर्जा भर गया है। हालांकि आयोजकों का दावा है कि यह एक सांस्कृतिक-सामाजिक मिलन था, लेकिन इसकी टाइमिंग, पैमाना और भागीदारी ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है – आखिर यह सब 'अभी क्यों' और विधानसभा के मानसून सत्र के बीच में क्यों?
जातिगत एकजुटता का अभूतपूर्व प्रदर्शन: पार्टि लाइन से ऊपर उठकर
हाल के वर्षों में यह पहली बार हुआ है कि ठाकुर या क्षत्रिय समुदाय के इतने सारे विधायक और विधान परिषद सदस्य (MLC) एकजुटता दिखाने के लिए एक साथ आए हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में लगभग 49 ठाकुर विधायक हैं, जिनमें से करीब 40 इस बैठक में शामिल हुए। यह जुटान पार्टी लाइनों से परे था, जिसमें समाजवादी पार्टी (SP) के निष्कासित विधायक राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह, बसपा (BSP) के उमा शंकर सिंह, भाजपा (BJP) के अभिजीत सिंह संगा और एमएलसी शैलेंद्र प्रताप सिंह जैसे प्रमुख नेता भी शामिल थे।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय: 'अदृश्य' चिंता या 'संगठित' असंतोष?
राजनीतिक विश्लेषक सुरेश बहादुर सिंह ने इस बैठक को महज एक डिनर या जन्मदिन की पार्टी मानने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा, "यह बैठक सिर्फ एक साधारण आयोजन नहीं है। यह 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद ठाकुर नेताओं के बीच एक अंडरकरंट (अदृश्य चिंता) को दर्शाती है, जब समुदाय के कई सदस्यों को लगा कि उन्हें टिकट वितरण के दौरान किनारे कर दिया गया।" उनके अनुसार, पश्चिमी यूपी में जनरल वी. के. सिंह को फिर से टिकट न मिलने के बाद शुरू हुई 'निराशा' अब एक 'संगठित अभिव्यक्ति' पा रही है।
सीएम योगी और राजनाथ सिंह की मौजूदगी में यह 'अलग बैठक' क्या संकेत देती है?
भले ही आयोजकों ने 'कुटुंब परिवार' की बैठक को अराजनीतिक बताया हो, लेकिन इसके राजनीतिक मायने स्पष्ट हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, दोनों ही ठाकुर समुदाय से आते हैं। जब राज्य और राष्ट्रीय राजनीति के दो सबसे शक्तिशाली चेहरे पहले से ही इस समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तब लगभग चार दर्जन ठाकुर विधायकों का अलग से बैठक करना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह भाजपा के भीतर अधिक 'लिवरेज' (राजनीतिक प्रभाव) हासिल करने की कोशिश है, या यह 'असंतोष का संकेत' है कि समुदाय के प्रभाव का व्यापक राजनीतिक प्रतिनिधित्व में तब्दील नहीं हो रहा है?
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