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Up Kiran , Digital Desk: केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर बेनकाब करने के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है जिसमें जाने-माने पत्रकार और पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर को भी शामिल किया गया है। सात साल पहले 'मीटू' आरोपों के चलते उन्हें विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अब एक बार फिर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम में नजर आएंगे।
यह प्रतिनिधिमंडल हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर की सच्चाई को दुनिया के सामने रखेगा। विभिन्न दलों के नेताओं को शामिल करते हुए यह टीम अलग-अलग देशों का दौरा करेगी। भाजपा से रविशंकर प्रसाद और बैजयंत पांडा कांग्रेस से शशि थरूर जदयू से संजय कुमार झा द्रमुक से कनिमोझी करुणानिधि एनसीपी (एसपी) से सुप्रिया सुले और शिवसेना से श्रीकांत शिंदे इस दल का हिस्सा होंगे।
रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व वाली टीम में एमजे अकबर को भी जगह मिली है। यह टीम यूरोपीय संघ और यूरोप के प्रमुख देशों जैसे यूके फ्रांस जर्मनी इटली और डेनमार्क का दौरा करेगी।
एमजे अकबर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ अपने मुखर विचारों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर और भारतीय सेना की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को भी सराहा था।
अकबर का राजनीतिक सफर पत्रकारिता से शुरू हुआ। उन्होंने लंबे समय तक पत्रकारिता की और बाद में कांग्रेस में शामिल हुए। 1989 में किशनगंज बिहार से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता लेकिन 1991 में हार गए। 2014 में भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया और फिर विदेश राज्य मंत्री बनाया गया।
2018 में 'मीटू' आंदोलन के दौरान उन पर पूर्व महिला सहयोगियों ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। अकबर ने इन आरोपों को निराधार बताया और आरोप लगाने वाली पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। 2021 में दिल्ली की एक अदालत ने रमानी को बरी कर दिया जिसके बाद अकबर ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की जिसने रमानी को नोटिस जारी किया।
केंद्रीय मंत्री पद से हटने के बाद अकबर नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय सोसाइटी के कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष बने लेकिन 2019 में सोसाइटी के पुनर्गठन के बाद उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा। अब वह एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी की टीम में शामिल होकर पाकिस्तान के खिलाफ भारत के वैश्विक अभियान का हिस्सा होंगे। इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में विपक्षी दलों के नेताओं की मौजूदगी राष्ट्रीय एकता और आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई का प्रतीक है।
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