Up Kiran, Digital Desk: 90 के दशक की सबसे खूबसूरत और टैलेंटेड एक्ट्रेसेस में से एक, मनीषा कोइराला, न सिर्फ एक बेहतरीन अदाकारा हैं, बल्कि एक फाइटर भी हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को मात देने के बाद ज़िंदगी को लेकर उनका नज़रिया पूरी तरह से बदल गया है। हाल ही में उन्होंने आध्यात्म, ज़िंदगी और मौत जैसे गहरे विषयों पर कुछ ऐसी बातें की हैं, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देंगी।
अब ज़िंदगी को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेती
कैंसर से जंग जीतने के बाद मनीषा अब ज़िंदगी को एक अलग ही नज़र से देखती हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "जब मैंने ज़िंदगी की सबसे बड़ी मुश्किलों का सामना कर लिया है, तो अब मुझे छोटी-छोटी बातों से फर्क नहीं पड़ता। मैं अब ज़िंदगी को बहुत ज़्यादा गंभीरता से नहीं लेती।"
उन्होंने बताया कि कैसे मुश्किल वक्त ने उन्हें सिखाया कि ज़िंदगी में कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता। वह कहती हैं, "चाहे अच्छा वक्त हो या बुरा, सब कुछ अस्थायी है। यह समझ आने के बाद आप हर पल को जीना सीख जाते हैं।"
जब मौत का डर खत्म हो गया: मनीषा ने उस दौर को भी याद किया जब वह ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रही थीं। उन्होंने कहा कि उस अनुभव ने उन्हें मौत के डर से आज़ाद कर दिया है। "मुझे लगता था कि मैं शायद नहीं बचूँगी। उस वक्त मैंने खुद को समझाया कि अगर यही मेरी किस्मत है, तो मैं इसे स्वीकार करती हूँ।"
उनका मानना है कि आध्यात्म ने इस मुश्किल दौर में उनकी बहुत मदद की। उन्होंने समझा कि आत्मा अमर है और शरीर सिर्फ एक माध्यम है। इस ज्ञान ने उन्हें शांति दी और जीने का एक नया मकसद भी। वह कहती हैं, "अब मुझे मौत से डर नहीं लगता, लेकिन मैं जीना चाहती हूँ। मैं ज़िंदगी के हर पल का सम्मान करती हूँ और इसे पूरी तरह से जीना चाहती हूँ।"
मनीषा कोइराला की ये बातें सिर्फ एक इंटरव्यू का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि यह ज़िंदगी के उस गहरे सच को बयां करती हैं, जिसे उन्होंने खुद अनुभव किया है। यह हमें सिखाता है कि कैसे बड़ी से बड़ी मुश्किल भी हमें तोड़ नहीं सकती, बल्कि हमें पहले से ज़्यादा मजबूत और समझदार बना सकती है।
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