Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड में अगले साल होने वाला विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण यानी SIR अब सिरदर्द बनता दिख रहा है। वजह है पहाड़ों से भारी पलायन। गांव खाली पड़े हैं। लोग दिल्ली यूपी हरियाणा में बस गए हैं। अब वोटर लिस्ट साफ करने का काम आसान नहीं रह गया।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि SIR से पहले प्री-SIR अभियान चलेगा। इसमें बीएलओ हर घर पहुंचेगा। लेकिन जिस घर में ताला लटक रहा हो वहां कौन बताएगा कि फलां व्यक्ति अब कहां रहता है। बाहर गए लोग अगर यूपी या दिल्ली की नई लिस्ट में नाम डलवा चुके होंगे तो पुराना नाम अपने आप कट जाएगा। जो नाम नहीं डलवाएंगे उन्हें गांव तक आकर साबित करना पड़ेगा कि वे अभी भी यहीं के वोटर हैं।
सबसे मजेदार खेल शादीशुदा महिलाओं का है। जिन लड़कियों का नाम 2003 की लिस्ट में मायके में था और ससुराल में नहीं डला था उन्हें अब मायके का प्रमाण देना होगा। मायके का नाम भी नहीं है तो मम्मी-पापा या दादा-दादी के नाम से खुद को जोड़ना पड़ेगा। नेपाल से ब्याही बहुएं तो अलग टेंशन हैं। उनकी नागरिकता जांचने का डर अलग बना हुआ है। अधिकारी कह रहे हैं कि सिर्फ वोटर सत्यापन का मामला है। फिर भी कागजों का जंजाल तो झेलना ही पड़ेगा।
मैदानी इलाकों में तो उल्टी कहानी है। यहां दस साल में वोटर 72 फीसदी तक बढ़ गए। धर्मपुर सबसे आगे है। उसके बाद डोईवाला, ऋषिकेश, काशीपुर, रुद्रपुर, किच्छा जैसी सीटें हैं। इन जगहों पर नए आए लोगों के पुराने रिकॉर्ड से मिलान होगा। कोई गड़बड़ निकली तो नाम कट सकता है।
पहाड़ों में सल्ट, केदारनाथ, पौड़ी, लैंसडौन, रानीखेत जैसी सीटें लगातार खाली हो रही हैं। वोटर घट रहे हैं। अब देखना यह है कि बाहर गए लोग वापस नाम जुड़वाने आते हैं या सीटें और कमजोर पड़ जाती हैं।
_943543150_100x75.png)
_613774581_100x75.png)
_165040351_100x75.png)
_1602298716_100x75.png)
_1509998033_100x75.png)