
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में एक मां की 15 साल की संघर्ष भरी कहानी का सुखद अंत हुआ, जब उर्मिला को आखिरकार उसका बिछड़ा बेटा हरिओम वापस मिल गया। इस भावुक पल में उर्मिला की आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। उन्होंने बेटे को गले लगाकर वर्षों के इंतजार और तकलीफों को भुला दिया और अधिकारियों का आभार जताया।
उर्मिला की कहानी: एक मां की जद्दोजहद
बिहार की रहने वाली उर्मिला की शादी करीब 20 साल पहले बुलंदशहर जिले के नरसेना गांव के निवासी सुशील से हुई थी। शादी के कुछ समय बाद उनके बेटे हरिओम का जन्म हुआ। लेकिन बेटे के जन्म के कुछ ही समय बाद सुशील की मृत्यु हो गई। इस हादसे ने उर्मिला को गहरे सदमे में डाल दिया और उसकी मानसिक स्थिति प्रभावित हो गई। इस दौरान वह स्याना इलाके में रहने लगी, जबकि हरिओम को परिवार के एक रिश्तेदार, जो उसके ताऊ हैं, ने अपने पास रख लिया और उसकी परवरिश की।
मां की तड़प, बेटा रहा दूर
हालांकि मानसिक अस्थिरता के बावजूद उर्मिला लगातार अपने बेटे से मिलने की कोशिश करती रही। वह बार-बार गांव जाकर उसे अपने साथ ले जाने की कोशिश करती, लेकिन हरिओम हर बार उसके साथ जाने से इनकार कर देता। इस बीच, उर्मिला ने कई बार प्रशासन से मदद की गुहार लगाई – थाना, जिलाधिकारी कार्यालय, एसएसपी तक गईं और यहां तक कि मुख्यमंत्री दरबार तक दस्तक दी – लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।
समाधान दिवस बना उम्मीद की किरण
बीते शनिवार को आयोजित समाधान दिवस में उर्मिला ने नरसेना थाने पहुंचकर एक बार फिर अपनी पीड़ा अधिकारियों के सामने रखी। उसने थानाध्यक्ष रितेश कुमार सिंह से अपने बेटे को वापस दिलवाने की गुजारिश की। इस बार उसकी बात सुनी गई और मामले को गंभीरता से लिया गया।
प्रशासन की मदद से मां-बेटे का हुआ मिलन
थाना प्रभारी रितेश कुमार सिंह ने मामले को स्याना सीओ प्रखर पांडे और एसडीएम गजेंद्र सिंह के संज्ञान में डाला। दोनों अधिकारियों ने इस पर तत्काल कार्रवाई शुरू की और हरिओम को खोजकर स्याना सीओ कार्यालय बुलाया। फिर मां-बेटे को मिलाया गया।
स्याना सीओ प्रखर पांडे ने बताया कि हरिओम को उसकी मां उर्मिला के सुपुर्द कर दिया गया है और वह अब अपनी मां के साथ रहने को तैयार है। वहीं, एसडीएम गजेंद्र सिंह ने बताया कि उर्मिला को सरकारी योजनाओं के तहत सहायता देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है ताकि वह अपने जीवन को फिर से पटरी पर ला सके।
एक मां की जीत, एक बेटे की वापसी
यह कहानी केवल एक मां और बेटे के मिलन की नहीं, बल्कि एक महिला की अदम्य इच्छाशक्ति, धैर्य और ममता की मिसाल है। 15 साल तक अपने बच्चे के लिए लड़ने वाली उर्मिला ने साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम और मां का हौसला कभी हार नहीं मानते। पुलिस और प्रशासन की समय पर पहल ने इस कहानी को सुखद मोड़ पर पहुंचाया, जो कि कई अन्य परिवारों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है।