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Up Kiran, Digital Desk: इस साल का मॉनसून (Monsoon) झारखंड के लिए किसी आपदा से कम नहीं रहा है। राज्य में पिछले एक दशक यानी 10 सालों में हुई यह सबसे भारी मॉनसूनी वर्षा थी, जिसने लगभग 458 लोगों की जान ले ली। यह आंकड़े सिर्फ बारिश के कारण डूबने से मरने वालों के नहीं हैं, बल्कि मॉनसून से जुड़ी अलग-अलग घटनाओं—जैसे कि बाढ़, बिजली गिरना और सूखा—से हुई मौतों को मिलाकर सामने आए हैं।
इस जानलेवा त्रासदी ने एक बार फिर हमारे सामने जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के भयानक और तत्काल परिणामों को ला खड़ा किया है।
डरावनी हकीकत जो आंकड़ों में दिखी:इस पूरे मॉनसून सीजन में 458 लोगों की मौतें दर्ज की गईं, जिनमें से हर ज़िले से मौतों की जानकारी सामने आई है:
भारी वर्षा/बाढ़: अचानक और लगातार बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन (Landslides) से कई जानें गईं।
आकाशीय बिजली (Lightning Strikes): मॉनसून के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं में असामान्य रूप से वृद्धि हुई, जिसके चलते बड़ी संख्या में किसानों और ग्रामीणों की मौतें हुई।
सूखा: हैरानी की बात है कि जहाँ राज्य के कई हिस्से बाढ़ से जूझ रहे थे, वहीं कुछ हिस्सों में वर्षा की कमी के कारण कृषि क्षेत्र में सूखा पड़ गया। मौसम की यह चरम स्थिति ही जलवायु परिवर्तन का सबसे स्पष्ट संकेत है।
राज्य सरकार और राहत एजेंसियों (Relief Agencies) ने कहा है कि ऐसे अप्रत्याशित (Unpredictable) मौसम को पहले से भांप पाना मुश्किल होता जा रहा है। मौसम की यह 'अत्यधिक परिवर्तनशीलता' ही मुख्य समस्या बन चुकी है। जहाँ एक तरफ एक-दो घंटे में ही इतनी बारिश हो जाती है, जो पूरे इलाके में पानी भर देती है, वहीं दूसरी तरफ कुछ ही हफ़्तों में खेत सूखे पड़ जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन के एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कोई अचानक आई प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि हमारे ग्रह पर बढ़ते तापमान (Global Warming) के सीधे नतीजे हैं। मॉनसून के पैटर्न में यह असंतुलन, भविष्य में भारत और ख़ासतौर पर झारखंड जैसे राज्यों के लिए गंभीर और स्थायी चुनौतियाँ पैदा कर सकता है। ज़रूरत इस बात की है कि अब राहत कार्यों से आगे बढ़कर दीर्घकालिक योजनाएँ (Long-term plans) बनाई जाएँ, ताकि ऐसी मानवजनित आपदाओं (Human-caused disasters) के ख़तरों को कम किया जा सके।