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बॉलीवुड से लेकर साउथ तक अपनी बेहतरीन अदाकारी से खास जगह बनाने वाले नील नितिन मुकेश आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। मशहूर गायक नितिन मुकेश के बेटे और दिग्गज सिंगर मुकेश के पोते होने के बावजूद नील को इंडस्ट्री में वह आसान रास्ता नहीं मिला जो अक्सर फिल्मी परिवार से आने वाले बच्चों को मिलता है। अपने लुक्स और बैकग्राउंड को लेकर उठे सवालों का सामना करते हुए नील ने खुद अपनी पहचान गढ़ी है।

बॉलीवुड में कदम रखते ही शुरू हुई चुनौतियों की कहानी

हाल ही में 'थेरेपी डायरीज' के साथ एक इंटरव्यू में नील नितिन मुकेश ने अपने करियर के उतार-चढ़ाव पर खुलकर बात की।

उन्होंने बताया कि कैसे लोग उनके लुक्स पर शक करते थे और कहते थे, "क्या ये हिंदी बोल पाएगा?"

क्योंकि उनकी शक्ल थोड़ी विदेशी सी लगती थी, लोग अक्सर सवाल उठाते थे कि क्या वो इंडियन फिल्मों में फिट बैठ पाएंगे या नहीं।

नील ने कहा, "लोग मेरे रंग और फैमिली बैकग्राउंड को देखकर तय कर लेते थे कि मैं एक्टिंग नहीं कर सकता। मेरे ऊपर शक किया जाता था कि मैं हिंदी अच्छे से बोल भी पाऊंगा या नहीं।"

पहली फिल्म से पहले खुद पर था पूरा भरोसा

जब नील से पूछा गया कि पहली फिल्म से पहले उन्हें कोई डर था या नहीं, तो उन्होंने साफ कहा:

"जब तक मुझे मेरी पहली फिल्म नहीं मिली थी, तब तक मैंने किसी भी डर को खुद पर हावी नहीं होने दिया था।"

हालांकि, लोगों की मानसिकता और उनके सवालों ने धीरे-धीरे उनके सामने चुनौतियां खड़ी कर दीं। अपने दादा मुकेश और पिता नितिन मुकेश जैसे बड़े नामों के परिवार से होने का दबाव भी उनके सिर पर था, लेकिन नील ने कभी हार नहीं मानी।

"फिरंगी" दिखने का ताना भी सहा, पर नहीं टूटा हौसला

नील बताते हैं कि उन्हें अक्सर सुनना पड़ता था, "तुम फिरंगी लगते हो, कैसे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में टिक पाओगे?"

लेकिन नील ने इन बातों को कमजोरी नहीं बनने दिया।

उन्होंने इन्हीं चुनौतियों को अपने सकारात्मक नजरिए से अपनी ताकत बना लिया।

उनका कहना है, "मैंने अपनी कमियों को पहचानकर उन्हें अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया और उसी से खुद को साबित किया।"

नील नितिन मुकेश का करियर: बाल कलाकार से लेकर लीड हीरो तक

नील का फिल्मी सफर बहुत दिलचस्प रहा है:

1988 और 1989 में 'विजय' और 'जैसी करनी वैसी भरनी' जैसी फिल्मों में उन्होंने बतौर बाल कलाकार शुरुआत की थी।

फिर 2002 में 'मुझसे दोस्ती करोगे' में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया।

आखिरकार 2007 में फिल्म 'जॉनी गद्दार' से उन्होंने बतौर लीड एक्टर धमाकेदार डेब्यू किया।

उनकी एक्टिंग को खूब सराहा गया और यही फिल्म उनके करियर का टर्निंग पॉइंट बनी। नील की आखिरी फिल्म 'हिसाब बराबर' साल 2024 में रिलीज हुई थी।

नील नितिन मुकेश: एक प्रेरणा, जो बताती है कि असली जीत आत्मविश्वास से होती है

नील नितिन मुकेश की कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

भले ही लोग शक करें, जज करें या ताने दें, अगर आप खुद पर भरोसा रखते हैं, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं।

नील ने यह साबित कर दिया कि सच्चा टैलेंट चमकने के लिए सिर्फ एक मौका चाहता है, और बाकी रास्ता खुद बन जाता है।

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