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Up Kiran, Digital Desk: चार साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का उद्घाटन किया था, तो उम्मीद की गई थी कि यह जगह बौद्ध तीर्थ पर्यटन का नया प्रवेश द्वार बनेगी। लुम्बिनी से लेकर गया तक फैले बौद्ध सर्किट का यह एयरपोर्ट केंद्र बन सकता था। मगर आज हकीकत कुछ और ही है – रनवे पर सन्नाटा पसरा है, टर्मिनल खाली खड़ा है, और उड़ानों के नाम पर केवल उद्घाटन के दिन की एक फ्लाइट दर्ज है।

एकमात्र अंतरराष्ट्रीय उड़ान, वह भी सब्सिडी पर

एयरपोर्ट के उद्घाटन के दिन श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 125 यात्रियों को लेकर एक फ्लाइट पहुंची थी। यह भारत सरकार की सब्सिडी पर चलने वाली एक प्रतीकात्मक उड़ान थी। उसके बाद से अब तक इस टर्मिनल पर कोई अन्य विमान नहीं उतरा। चार साल में ना कोई घरेलू उड़ान शुरू हुई, ना कोई अंतरराष्ट्रीय।

महज उद्घाटन से नहीं चलता पर्यटन

यह एयरपोर्ट विशेष रूप से बौद्ध देशों से आने वाले श्रद्धालुओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल के रूप में प्रसिद्ध कुशीनगर के अलावा, इसके पास लुम्बिनी, श्रावस्ती, सारनाथ, कपिलवस्तु और गया जैसे ऐतिहासिक स्थल हैं। इन सभी को जोड़कर एक मजबूत बौद्ध पर्यटन नेटवर्क की परिकल्पना की गई थी।

लेकिन हकीकत ये है कि चार साल में न तो किसी विदेशी एयरलाइन ने रुचि दिखाई, न ही सरकार ने इसे व्यावसायिक रूप से उपयोगी बनाने के प्रयासों में निरंतरता बरती।

खर्च करोड़ों में, उड़ानें शून्य पर

एयरपोर्ट के रखरखाव पर हर साल पांच करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च आ रहा है। लेकिन इसके बदले कोई राजस्व नहीं आ रहा। इस पूरे ढांचे की स्थिति आज सफेद हाथी जैसी है – दिखने में भव्य, मगर उपयोग में शून्य।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें आज भी गोरखपुर जाकर ही उड़ान लेनी पड़ती है। कुशीनगर से अब तक एक भी नियमित सेवा शुरू नहीं हो सकी है।

क्या रह गई कमी?

विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी हवाई अड्डे को सफल बनाने के लिए महज उद्घाटन या बुनियादी ढांचे से काम नहीं चलता। वहां एयरलाइनों को आकर्षित करने के लिए व्यावसायिक मॉडल, सब्सिडी योजनाएं, और सरकार का सतत समर्थन जरूरी होता है। कुशीनगर एयरपोर्ट में फिलहाल इन सबका अभाव नजर आता है।

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