Up kiran,Digital Desk : बिहार चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन की हार का ठीकरा अब कांग्रेस के सिर पर फूटता दिख रहा है. हार के बाद से ही INDIA गठबंधन के भीतर एक नई जंग छिड़ गई है, जिसके केंद्र में कांग्रेस है. सहयोगी दल अब खुलकर कांग्रेस पर गठबंधन धर्म न निभाने का आरोप लगा रहे हैं. कहा जा रहा है कि कई सीटों पर कांग्रेस ने "फ्रेंडली फाइट" कर के महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाया.
बिहार की इस हार के बाद अब झारखंड, महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक, कई राज्यों से कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजने लगी है. ऐसा लग रहा है कि अगर कांग्रेस ने अपना रवैया नहीं बदला, तो वह राष्ट्रीय राजनीति में धीरे-धीरे अकेली पड़ती जाएगी.
झारखंड से उठी पहली आवाज़
INDIA गठबंधन में दरार की सुगबुगाहट तो बिहार चुनाव से पहले ही शुरू हो गई थी, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने खुद को महागठबंधन से अलग कर लिया था. JMM का आरोप था कि कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका निभाते हुए छोटे दलों को नज़रअंदाज़ कर रही है. JMM के अनुसार, INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वह क्षेत्रीय दलों को "जूनियर पार्टनर" समझती है और उन्हें बराबर का हिस्सेदार नहीं मानती.
उद्धव गुट भी हमलावर
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी बिहार की हार के बाद कांग्रेस पर निशाना साध रही है. उद्धव गुट का आरोप है कि गठबंधन में आपसी तालमेल की भारी कमी है. राज्य स्तर पर कांग्रेस के नेता अपनी मनमानी करते हैं और कई सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर लेते हैं, जिससे गठबंधन की पूरी रणनीति फेल हो जाती है.
यूपी चुनाव से पहले अखिलेश ने दिखाए तेवर
अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और अखिलेश यादव ने भी अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. उनका साफ कहना है कि गठबंधन को चलाना है तो कई चीजों को ठीक करना होगा. अब गठबंधन के भीतर एक "डिसेंट्रलाइज्ड मॉडल" की मांग उठने लगी है. इसका सीधा सा मतलब है कि जो पार्टी जिस राज्य में मजबूत है, फैसले लेने में उसी की चलेगी और राष्ट्रीय रणनीति में भी उसकी बराबर की भूमिका होगी.
AAP ने तो पहले ही बना ली थी दूरी
आम आदमी पार्टी (AAP) तो कांग्रेस के रवैये से पहले से ही नाराज चल रही थी. यही वजह है कि AAP ने बिहार चुनाव में अकेले उतरने का फैसला किया था. पार्टी का तर्क है कि वह अपने विस्तार की रणनीति से कोई समझौता नहीं कर सकती. AAP का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर INDIA गठबंधन में अभी इतना दम नहीं है कि उसके लिए पार्टी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को कुर्बान कर दे.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह एक नई शुरुआत है. आने वाले समय में कई और क्षेत्रीय दल भी अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस से किनारा कर अकेले चुनाव लड़ने को प्राथमिकता दे सकते हैं. अगर ऐसा होता है, तो देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए चुनौतियां और भी बढ़ जाएंगी और वह गठबंधन की राजनीति में अलग-थलग पड़ सकती है.

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