_211158760.png)
Up Kiran, Digital Desk: दाचीगाम के गहरे जंगलों में हाल ही में हुए सैन्य अभियान ने न सिर्फ तीन खतरनाक आतंकवादियों को ढेर किया, बल्कि घाटी में फैले भय और असुरक्षा की भावना को भी करारा जवाब दिया है। सोमवार को जिस तरीके से भारतीय सुरक्षाबलों ने 'ऑपरेशन महादेव' को अंजाम दिया, उससे यह साफ हो गया है कि अब आतंकियों की कोई भी हलचल बगैर जवाब के नहीं रहेगी।
लोगों की सांस में फिर लौटी उम्मीद
22 अप्रैल को हुए पहलगाम हमले के बाद कश्मीर में आम नागरिकों में गुस्से और डर का माहौल था। 26 बेकसूरों की जान गई थी — उनमें कई पर्यटक थे जो सिर्फ इस वादी की खूबसूरती देखने आए थे। हमले के बाद स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए थे, कई परिवारों ने कश्मीर छोड़ने तक की योजना बना ली थी। लेकिन अब, जब सुरक्षा बलों ने हमले के मास्टरमाइंड्स — सुलेमान उर्फ फैज़ल, अफगानी और जिबरान को मार गिराया है, तो आम लोगों को लगा है कि उनका दर्द बेकार नहीं गया।
तकनीक और ज़मीनी सूचना का ज़बरदस्त तालमेल
इस पूरे ऑपरेशन की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि एक छोटा-सा रेडियो सिग्नल पूरे खेल को पलट गया। एक चीनी निर्मित अल्ट्रा रेडियो डिवाइस से भेजा गया एनक्रिप्टेड संदेश जब भारतीय एजेंसियों के हाथ लगा, तो उसे अनदेखा नहीं किया गया। शुरुआती जांच में पता चला कि यही डिवाइस लश्कर-ए-तैयबा द्वारा पहलगाम हमले की योजना के दौरान उपयोग में लाया गया था।
इसके बाद खुफिया टीमें एक्टिव हो गईं। दाचीगाम के जंगलों में इस डिवाइस की आखिरी एक्टिविटी मिलने के बाद फोर्सेज ने अपनी खोज को सीमित किया। लेकिन केवल तकनीक ही काफी नहीं थी — स्थानीय बकरवाल समुदाय से मिली जानकारी ने सुरक्षाबलों को उस खास क्षेत्र तक पहुंचाया, जहां आतंकी छिपे थे।
ड्रोन से पहचान, फिर सर्जिकल सफाई
जैसे ही आतंकियों की गतिविधियों की पुष्टि हुई, राष्ट्रीय राइफल्स और पैरा स्पेशल फोर्सेज की टीमें महादेव पहाड़ी की तरफ कूच कर गईं। निगरानी ड्रोन ने हथियारों से लैस तीनों आतंकियों की पोजिशन को कैप्चर किया और फिर बिना समय गंवाए, सटीक निशानेबाज़ी के साथ ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। इस तरह तीनों आतंकवादियों का खात्मा किया गया — यह एक रणनीतिक जीत थी, न कि सिर्फ एक सैन्य मुठभेड़।
अभियान की जड़ें 'ऑपरेशन सिंदूर' से जुड़ीं
यही नहीं, यह कार्रवाई उस बड़ी रणनीति का हिस्सा थी जो 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत 7 मई को शुरू हुई थी। इस अभियान में भारत ने न केवल सीमा पार स्थित आतंकी ठिकानों पर निशाना साधा था, बल्कि पीओके में सक्रिय जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के नेटवर्क पर भी सीधा वार किया था। सूत्रों के मुताबिक, इन हमलों में मौलाना मसूद अज़हर के परिवार के 10 सदस्य और 4 नज़दीकी सहयोगी मारे गए थे — यह बात खुद अज़हर ने स्वीकार की।
क्या बदला आम आदमी के लिए?
यह सवाल लगातार उठता रहा है कि इतने बड़े ऑपरेशन से आम जनता को क्या मिला? जवाब सीधा है — भरोसा। आतंकवादी अब कश्मीरियों को सिर्फ एक राजनीतिक औजार मानते रहे हैं, लेकिन अब जनता जान चुकी है कि अगर वे साथ दें, तो आतंक का चेहरा जल्द ही मिट सकता है। दाचीगाम में मिली इस सफलता ने यह साफ किया है कि हर रेडियो सिग्नल, हर संदिग्ध गतिविधि पर अब पैनी नज़र है।
घाटी में अब सन्नाटा नहीं, सुरक्षा है
पहलगाम हमले के बाद घाटी में जो खौफ का माहौल था, वह अब कुछ हद तक शांत हुआ है। लोगों ने फिर से दुकानें खोलनी शुरू की हैं, पर्यटकों की आमद भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। लेकिन इस बार लोगों के चेहरे पर जो आत्मविश्वास है, वह इस बात का संकेत है कि वे अब आतंक को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
--Advertisement--