Up Kiran, Digital Desk: पाक की अर्थव्यवस्था इन दिनों गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। बढ़ती महंगाई, घटते विदेशी मुद्रा भंडार और राजनीतिक अस्थिरता के बीच अब देश एक और बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है भारी विदेशी कर्ज। चालू वित्त वर्ष 2025-26 में पाकिस्तान को 23 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का ऋण चुकाना है। सरकार को इस मुश्किल घड़ी में पुराने सहयोगी देशों से राहत की उम्मीद है।
कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान
पाकिस्तान की हालिया आर्थिक समीक्षा 2024-25 के मुताबिक, मार्च 2024 के अंत तक देश पर कुल कर्ज़ 76,010 अरब पाकिस्तानी रुपए तक पहुंच चुका था। इसमें से 51,520 अरब रुपए यानी लगभग 180 अरब अमेरिकी डॉलर घरेलू कर्ज़ के रूप में हैं, जबकि 24,490 अरब रुपए (करीब 87.4 अरब डॉलर) विदेशी कर्ज की श्रेणी में आते हैं। यह आंकड़ा देश की डांवाडोल आर्थिक स्थिति को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
कर्ज की दोहरी मार, सरकार और IMF दोनों से कर्ज
विदेशी कर्ज के इस आंकड़े में दो प्रमुख हिस्से शामिल हैं। पहला हिस्सा है सरकार द्वारा विभिन्न देशों और एजेंसियों से लिए गए ऋण का, जबकि दूसरा भाग अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से प्राप्त सहायता राशि का है। अब, 2025-26 के दौरान पाकिस्तान को कुल 23 अरब डॉलर का विदेशी ऋण चुकाना होगा, जो वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार और राजकोषीय स्थिति को देखते हुए एक बड़ी चुनौती है।
‘मित्र देशों’ से राहत की उम्मीद
इस 23 अरब डॉलर की राशि में से 12 अरब डॉलर ऐसे हैं, जो ‘मित्र देशों’ द्वारा पाकिस्तान में अस्थायी जमा (deposits) के रूप में रखे गए हैं। इस राशि में सऊदी अरब से 5 अरब डॉलर, चीन से 4 अरब डॉलर, संयुक्त अरब अमीरात से 2 अरब डॉलर और कतर से लगभग 1 अरब डॉलर शामिल हैं। इस वक्त पाकिस्तान सरकार की निगाह इन देशों पर टिकी है, ताकि वे इन जमाओं की वापसी की अवधि को आगे बढ़ा दें और पाकिस्तान को तत्काल राहत मिल सके।
ऋण भुगतान के लिए बजट में बड़ा हिस्सा
पाकिस्तान सरकार ने अपने 2025-26 के संघीय बजट में ऋण भुगतान को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। बजट के कुल 17,573 अरब रुपए में से 8,200 अरब रुपए केवल घरेलू और विदेशी कर्ज चुकाने के लिए रखे गए हैं, जो कुल बजट का 46.7 प्रतिशत है। यानी देश की लगभग आधी वित्तीय योजना सिर्फ पुराने कर्जों को निपटाने में खर्च हो रही है।
इसके अलावा, पाकिस्तान को इस वित्तीय वर्ष में बहुपक्षीय संस्थाओं, द्विपक्षीय ऋणदाताओं, अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड होल्डर्स और वाणिज्यिक कर्जदाताओं को भी करीब 11 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है। यह स्थिति दर्शाती है कि देश का ऋण भुगतान अब सिर्फ एक आर्थिक मसला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व से जुड़ा विषय बनता जा रहा है।
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