
नई दिल्ली। देश के हर नागरिक को न्याय पाने का अधिकार है, लेकिन कई बार ऐसे हालात सामने आते हैं जब किसी पीड़ित को पुलिस थाने में एफआईआर (FIR) दर्ज कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कुछ मामलों में पुलिस FIR दर्ज करने से साफ इनकार कर देती है, जिससे आम आदमी असमंजस में पड़ जाता है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि कानून आपको क्या अधिकार देता है।
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 154 के अनुसार, यदि कोई संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) हुआ है, तो पुलिस कर्मी का यह कर्तव्य है कि वह शिकायतकर्ता की सूचना पर FIR दर्ज करे। संज्ञेय अपराध वे होते हैं जिनमें पुलिस बिना कोर्ट की अनुमति के गिरफ्तारी कर सकती है, जैसे हत्या, बलात्कार, डकैती आदि।
अगर पुलिस किसी वैध संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट लेने से मना करती है, तो आप लिखित में शिकायत संबंधित क्षेत्र के पुलिस अधीक्षक (SP) या वरिष्ठ अधिकारियों को भेज सकते हैं। इसके अलावा, धारा 156(3) के तहत आप सीधे मजिस्ट्रेट के पास जाकर FIR दर्ज कराने का अनुरोध कर सकते हैं।
इसके अलावा, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग जैसे निकायों में भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। कई राज्यों में अब ऑनलाइन FIR दर्ज करने की सुविधा भी उपलब्ध है, जिससे पीड़ित व्यक्ति को थाने के चक्कर नहीं लगाने पड़ते।
यह जानना जरूरी है कि FIR दर्ज कराना आपका अधिकार है, न कि कोई अहसान। यदि कोई पुलिसकर्मी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ भी विभागीय कार्यवाही की जा सकती है।
नागरिकों को चाहिए कि वे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें और किसी भी तरह के उत्पीड़न या अन्याय की स्थिति में कानून का सहारा लेने से पीछे न हटें।
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