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Up Kiran, Digital Desk: झारखंड की राजधानी रांची से पुलिस महकमे की साख पर सवाल खड़े करने वाली घटना सामने आई है। धुर्वा थाना परिसर में ही एक एएसआई और थाने के मुंशी के बीच हिंसक झड़प ने न केवल विभागीय अनुशासन को कठघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि यह भी दर्शा दिया कि सिस्टम के भीतर संवाद और जवाबदेही की कितनी कमी है।

पुलिस के भीतर की खींचतान या जवाबदेही से बचने की कोशिश?
मामला धुर्वा थाना का है, जहां एएसआई सुदीन रविदास और मुंशी उदय शंकर यादव के बीच विवाद ने हाथापाई का रूप ले लिया। यह झगड़ा थाने में बंद चोरी और छिनतई के आरोपियों को कथित रूप से बिना उचित प्रक्रिया के रिहा किए जाने को लेकर शुरू हुआ। एएसआई जब अगली सुबह ड्यूटी पर लौटे तो पाया कि गिरफ्तार किए गए 12 में से 6 संदिग्ध थाने से गायब थे। सवाल पूछने पर विवाद इतना बढ़ा कि मारपीट तक बात पहुंच गई।

थाने में हुआ ऐसा बर्ताव – जनता क्या उम्मीद रखे?
यह घटना सिर्फ एक आंतरिक विवाद नहीं, बल्कि पुलिस महकमे के आचरण और जवाबदेही पर सवाल खड़ा करती है। जिस जगह से कानून व्यवस्था संभालने की उम्मीद होती है, वहीं अगर नियमों की अनदेखी और हिंसा हो, तो आम नागरिक पुलिस से भरोसा कैसे रखेगा?

बेवजह रिहाई या अंदरूनी सेटिंग?
रथ मेला के दौरान चोरी व छिनतई के मामलों में गिरफ्तार किए गए आरोपियों को आखिर क्यों और किस आधार पर छोड़ा गया, यह सवाल जांच का विषय है। लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि एएसआई द्वारा इस पर आपत्ति जताना ही उन्हें हिंसा का शिकार क्यों बना गया? कहीं यह थाने के भीतर "अपनों को बचाने की संस्कृति" का संकेत तो नहीं?

घायल एएसआई की शिकायत पर सीनियर अफसर हरकत में
एएसआई सुदीन रविदास की शिकायत अब रांची एसएसपी और डीआईजी चंदन कुमार सिन्हा तक पहुंच चुकी है। उन्होंने मामले की जांच के निर्देश दे दिए हैं। लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है जब पुलिस थाने के भीतर ही कानून की धज्जियां उड़ाई गई हों।

 

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